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Buddha Purnima 2023: 2023 में कब है बुद्ध पूर्णिमा, जाने कौन है गौतम बुद्ध, कैसे हुई बुद्धत्व की प्राप्ति

Buddha Purnima 2023 | Buddha Jayanti 2023: हिंदू धर्म में बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्‍व है। वैशाख माह (Vaishakh Month) की पूर्णिमा तिथि को ही भगवान बुद्ध (Lord Buddha) का जन्‍म हुआ था। इसलिए बुद्ध पूर्णिमा भी इस पूर्णिमा को कहा जाता है। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बौद्ध अनुयायियों के साथ-साथ हिंदुओं के लिए भी बहुत ही खास महत्व रखता है। हिन्‍दू धर्म के मुताबिक गौतम बुद्ध को भगवान श्री विष्णु का नौवा अवतार माना जाता है। दुनिया के कई देशों में बुद्ध जन्मोत्सव मनाया जाता है।

Buddha Purnima 2023 | Buddha Jayanti 2023

  • बुद्ध पूर्णिमा 2023 कब है?
  • बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) 2023 व 2024
  • बुद्धत्व (Budhtav) की कैसे हुई प्राप्ति ?
  • बुद्ध जयंती कहां-कहां मनाई जाती है
  • बुद्ध पूर्णिमा का महत्त्व
  • पवित्र नदियों में स्नान करना है शुभ
  • मानसिक रोगों से मुक्ति
  • बुद्ध का जीवन – परिचय
  • बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास
  • क्यों मनाते हैं (Buddha Purnima) बुद्ध पूर्णिमा
  • बुद्धत्व की ऐसे हुई प्राप्ति
  • बुद्ध के चार सूत्र
  • बुद्ध के 8 सूत्रीय मार्ग
  • इस विधि से करें आराधना, होगी हर मनोकामना पूरी
  • इस दिन जरूर करे ये काम

बुद्ध पूर्णिमा 2023 कब है?

बुद्ध पूर्णिमा – दिन – शुक्रवार, 05 मई 2023
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 04 मई 2023 दोपहर 11:44 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समापन – 05 मई 2023 रात 11:03 मिनट तक

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वैशाख पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) का महापरिनिर्वाण कुशीनगर में 80 साल की उम्र में हुआ था। एक ही दिन भगवान गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) का जन्म, सत्य का ज्ञान व महापरिनिर्वाण मतलब वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima) के दिन ही हुआ। इसी के चलते वैशाख माह में पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) 2023 व 2024

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2023 – 5 मई शुक्रवार
2024 – 23 मई – गुरूवार

बुद्ध का जीवन – परिचय

हम सभी को पता है कि बुद्ध (Buddha) विश्व भर में बौद्ध धर्म के प्रबुद्ध प्रचारक थे। पर उन घटनाओं के बारे में जानना भी महत्वपूर्ण है जिनकी वजह से सिद्धार्थ गौतम (Siddhartha Gautama) ने निर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध धर्म के विद्वानों के मुताबिक, भारत के एक श्रेष्ठ परिवार में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। अपनी युवावस्था के समय संसार के कष्टों से सिद्धार्थ बिल्कुल दूर थे और बहुत वैभवशाली जीवन व्यतीत कर रहे थे। बाहरी संसार के विषय में उत्सुकता बढ़ने पर, अपने एक नौकर को उन्हें पास के गरीब कस्बे में ले जाने के लिए कहा।

सिद्धार्थ ने इस छोटी यात्रा के वक्त, बीमारी, दुःख, व लालच सहित कई भयानक दृश्यों का सामना किया। सिद्धार्थ इस घटना से बहुत अधिक दुखी हुए और इसके पश्चात, शराब या स्त्रियों जैसी साधारण चीजों में भी उन्हें आनंद मिलना बंद हो गया। इस घटना के थोड़े वक्त के पश्चात ही सिद्धार्थ सांसारिक कष्टों की वजह खोजने के लिए यात्रा पर निकल पड़े। सिद्धार्थ को कई वर्षों के आत्म-चिंतन, कष्ट और ध्यान के बाद पता चला कि सभी सांसारिक कष्टों का कारण मनुष्य की इच्छा है। ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात, सिद्धार्थ (Siddhartha) ने अपनी शिक्षाओं का भारत के लोगों में प्रचार किया। 80 साल की आयु में सिद्धार्थ गौतम (Siddhartha Gautam) की मृत्यु हुई। और आज भी पूरी दुनिया में सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाएं प्रसिद्ध हैं।

बुद्धत्व (Budhtav) की कैसे हुई प्राप्ति ?

प्राचीन हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, बुद्ध 29 साल की आयु में घर छोड़कर सन्यास का जीवन बिताने लगे थे। महात्मा बुद्ध ने एक पीपल वृक्ष के नीचे करीब 6 वर्ष तक कठिन तप किया था। भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन ही पीपल के वृक्ष के नीचे सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। भगवान बुद्ध को जहां ज्ञान की प्राप्ति हुई वह जगह बाद में बोधगया कहलाई। इसके बाद अपने ज्ञान का प्रकाश महात्मा बुद्ध ने पूरे विश्व में फैलाया और एक नई रोशनी पैदा की। इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) का पर्व 05 मई 2023, शुक्रवार को मनाया जाएगा।

बुद्ध जयंती कहां-कहां मनाई जाती है

भारत के अतिरिक्त चीन, सिंगापुर, नेपाल, वियतनाम, जापान, थाइलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया आदि विश्व के कई देशों में पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। बिहार में स्थित बोद्ध गया (Bodh Gaya) बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिए भी यह पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के मौके पर कुशीनगर में लगभग एक महीने का मेला लगता है। इस उस्तव को श्रीलंका जैसे कुछ देशों में वैशाख उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन बौद्ध अनुयायी अपने घरों में दीपक जलाते हैं। और घरों को दीपों और फूलों से सजाते हैं। बौद्ध धर्म के ग्रंथों का पाठ इस दिन किया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्त्व

हिन्दू यानी सनातन धर्म के अनुयाइयों के लिए भी बुद्ध पूर्णिमा ख़ास महत्व रखती है। हिन्दू धर्म के लोग भगवान् बुद्ध को विष्णु जी के अवतार के रूप में पूजते हैं। और पूरे श्रद्धा भाव से इस दिन विष्णु भगवान और बुध भगवान की पूजा करते हैं। बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के लिए भी विशेष मायने रखती है और विशेष रूप से बुद्ध भगवान को पूजा जाता है।

हिंदू धर्म के प्राचीन पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान वैशाख पूर्णिमा का महत्त्व श्री कृष्ण ने अपने परम-मित्र सुदामा को उस समय बताया था जब वे द्वारिका नगरी श्री कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। भगवान कृष्ण जी के बताने के अनुसार, इस दिन सुदामाजी ने व्रत किया था। इससे उनकी दरिद्रता व दुःख दूर हो गए थे। साथ ही सुदामाजी (Sudamaji) के जीवन में खुशहाली आई थी। इसके बाद से वैशाख महीने की पूर्णिमा तिथि जिसे बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) कहा जाता है। उसका महत्त्व और बढ़ गया। इस दिन हिन्दुओं में उपवास करना व विष्णु जी का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

पवित्र नदियों में स्नान करना है शुभ

इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। और लोग इस दिन दीये प्रज्ज्वलित करके घर को फूलों से सुसज्जित करते हैं। वैसे बुद्ध पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाना शुभ है। लेकिन गंगा नदी में डुबकी लगाना संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान करना भी नदी स्नान के समान ही फल देगा। बुद्ध पूर्णिमा के दिन धार्मिक कार्य करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है और दान -पुण्य करना भी इस दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।

मानसिक रोगों से मुक्ति

उत्तरी भारत में भगवान बुद्ध को भगवान श्री विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है। हालांकि बुद्ध को दक्षिण भारत में विष्णु का अवतार नहीं माना जाता है। दक्षिण भारतीय विष्णु का 8वां अवतार बलराम को तो श्री कृष्ण को 9वां अवतार मानते हैं। बुद्ध को बौद्ध धर्म के अनुयायी भी भगवान विष्णु का अवतार नहीं मानते हैं। मान्यता अनुसार है कि इस दिन वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है।

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास

सिद्धार्थ गौतम की मृत्यु के पश्चात सैकड़ों वर्षों से बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) का उत्सव मनाया जाता था। इसके बावजूद, बुद्ध पूर्णिमा उत्सव को 20वीं सदी के मध्य से पहले तक आधिकारिक बौद्ध अवकाश का दर्ज़ा नहीं दिया गया था। बौद्ध धर्म की चर्चा करने के लिए 1950 में, श्रीलंका (Sri Lanka) में विश्व बौद्ध सभा (World Buddhist Assembly) का आयोजन किया गया। इस सभा में, उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक अवकाश बनाने का निर्णय किया। जो भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के जन्म, जीवन और मृत्यु के सम्मान में मनाया जायेगा।

भारत में बुद्ध पूर्णिमा मनाने के लिए कुछ सर्वश्रेष्ठ स्थान –

बोधगया
गंगटोक
सारनाथ

क्यों मनाते हैं (Buddha Purnima) बुद्ध पूर्णिमा

दरअसल, जब अपने जीवन में हिंसा, पाप व मृत्यु के विषय में जाना, तब से गौतम ने मोह – माया को त्याग दिया। ऐसे में भगवान बुद्ध ने अपने परिवार को छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली। और स्वयं सत्य की खोज में निकल पड़े। इसके पश्चात बुद्ध को सत्य का ज्ञान भी हुआ। वहीं, वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima) की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है। इसी कारण से प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

ये है इतिहास

बुद्ध पूर्णिमा को 20वीं दी से पहले तक आधिकारिक बौद्ध अवकाश का दर्जा प्राप्त नहीं था। पर श्रीलंका में सन 1950 में विश्व बौद्ध सभा का आयोजन किया गया और बौद्ध धर्म की चर्चा करने के लिए ये आयोजन किया गया था। इसके बाद से ही बुद्ध पूर्णिमा को इस सभा में आधिकारिक अवकाश बनाने का फैसला हुआ। वहीं, इस दिन को भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के जन्मदिन के सम्मान में मानाया जाता है।

बुद्धत्व की ऐसे हुई प्राप्ति

हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, बुद्ध जब महज 29 वर्ष के थे, तब उन्होंने संन्यास ले कर लिया था और फिर उन्होंने बोधगया (Bodh Gaya) में पीपल के पेड़ के नीचे 6 वर्ष तक कठिन तप किया था। बिहार के गया जिले में वो बोधिवृक्ष आज भी स्थित है। अपना पहला उपदेश भगवान बुद्ध ने सारनाथ में दिया था। वहीं, भगवान बुद्ध 483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन ही पंचतत्व में विलीन हुए थे।

बुद्ध के चार सूत्र

वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima) गौतम बुद्ध के जीवन की 3 अहम बातें -बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति व बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। चार सूत्र गौतम बुद्ध ने दिए उन्हें ‘चार आर्य सत्य ‘ के नाम से जानते है । पहला है ‘दुःख’। दूसरा है ‘दुःख का कारण’। तीसरा है दुःख का निदान और चौथा है मार्ग वह जिससे दुःख का निवारण होता है। यही गौतम का अष्टांगिक मार्ग भी है।

बुद्ध के मूल सिद्धांतों में 4 प्रमुख बातें हैं, जो इस तरह है –

दुख का सत्य
दुख की उत्पत्ति का सच
दुख की समाप्ति का सत्य
दुख की समाप्ति के मार्ग का (सच) सत्य

अर्थात, भगवान बुद्ध के अनुसार जीवन दुखों का भंडार है और जीवन के हर पक्षों में दुख समाहित है। भगवान बुद्ध इच्छा को दुख का मूल कारण मानते हैं। व्यक्ति को इच्छा ही भौतिक जीवन से बांधे रखती है। अगर कोई मनुष्य अपनी इच्छा को मार ले तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। भगवान बुध कहते हैं कि इच्छा को त्याग कर अष्ठ सूत्रीय मार्ग से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

बुद्ध के 8 सूत्रीय मार्ग

दयालुता, सत्यवादी, पूर्ण व उचित संभाषण
निष्कपट, शांतिपूर्ण व उचित कर्म
उचित आजीविका की खोज, किसी को जिससे हानि न हो
उचित प्रयास व आत्म-नियंत्रण
उचित मानसिक चेतना
उचित ध्यान व जीवन के अर्थ पर ध्यान केन्द्रित करना
निष्ठावान और बुद्धिमान इंसान का मूल्य उसके उचित विचारों से है
अंधविश्वास से बचना चाहिए व सही समझ विकसित करना चाहिए

भगवान बुद्ध के अनुसार, इन आठ सूत्रीय मार्ग की व्याख्या उनका दिखाया गया मध्यम मार्ग करता है। जो व्यक्ति को मोक्ष की तरफ ले जाता है। वेदों की प्रमाणिकता को भगवान बुद्ध नकारते हैं। भगवान के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके दर्शन को संकलित करने के लिए 500 सालो तक बौद्ध धर्म की 4 बौध संगति आयोजित की गई थीं। इसके फलस्वरूप त्रि-पटकों का लेखन हुआ – विनय, सुत्त व अभिधम्म। पाली भाषा में ये त्रिपट लिखे गए हैं।

इस विधि से करें आराधना, होगी हर मनोकामना पूरी

बुद्ध पूर्णिमा़ व्रत विधि

वैशाख पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान से पूर्व व्रत करने का संकल्प लें।

वैशाख पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पहले वरुण देव को प्रणाम करें।

स्नान के बाद सूर्य मंत्र (Surya Mantra) का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।

स्नान से निवृत्त होने के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

आखिरी में दान-दक्षिणा दें।

मां लक्ष्मी की आराधना करें।

वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा़ के दिन मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर 11 कौड़ियां चढ़ाकर मां लक्ष्मी का हल्दी से तिलक करें। इन कौड़ियों को अगले दिन एक लाल कपड़े में बांधकर वहां रख दे जहां आप धन रखते हैं। इस उपाय को करने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं रहेगी।

पीपल वृक्ष की आराधना करें

इस बात का शास्त्रों में वर्णन है कि पीपल के वृक्ष में पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का आगमन होता है। पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करने के पश्चात पीपल के पेड़ पर कुछ मीठा चढ़ाकर जल अर्पित करना चाहिए।

चंद्र देव को अर्घ्य दें

विवाहित जीवन में मधुरता के लिए वैशाख पूर्णिमा के दिन पति-पत्नी में से किसी को चंद्रमा को अर्घ्य जरूर देना चाहिए। साथ में भी पति- पत्नी अर्घ्य दे सकते हैं। इस उपाय से आपके वैवाहिक जीवन में प्यार और मधुरता का रस बना रहेगा।

इस दिन जरूर करे ये काम

इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा होती है। या घर पर पानी में गंगा जल की कुछ बूंदे डालकर स्नान करें।

वैशाख पूर्णिमा तिथि पर हनुमान चालीसा का पाठ करें।इस दिन स्नान के बाद गरीबों को दान करना चाहिए।

वैशाख मास में अंतिम तीन दिन गीता का पाठ करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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