दान के विषय में जान ले ये बातें 

 दान है हाथों का श्रृंगार -  दान करने वाले हाथों की सुंदरता कंगन पहनने वाले हाथों से कई अधिक होती है।

शरीर तब शुद्ध होता है, जब व्यक्ति स्नान करता है, ना कि चंदन या किसी सुगंधित लेप को शरीर पर लगाता है।

मान सम्मान पाने से तृप्ति मिलती है, भोजन करने से नहीं और मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से होती है, श्रृंगार से नहीं।

दान करने से व्यक्ति को कभी भी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। साथ ही स्वस्थ रहने के लिए स्नान और शुद्धता का ध्यान हमेशा रखना चाहिए।

व्यक्ति को मान सम्मान उसके व्यवहार से मिलता है और ज्ञान का साथ व्यक्ति से कभी अलग नहीं होना चाहिए।

दान के समान और कोई कार्य नहीं - अन्न और जल के दान के समान और कोई कार्य नहीं है। द्वादशी के समान अन्य कोई तिथि नहीं है, गायत्री के समान कोई मंत्र नहीं है और मां से बढ़कर अन्य कोई देवता नहीं है। इसलिए व्यक्ति को सुख और पुण्य की प्राप्ति के लिए दान अवश्य करना चाहिए। 

साथ ही उसे गायत्री मंत्र का जाप हमेशा करना चाहिए। इससे ना केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि शरीर की शुद्धि भी होती है।

साथ ही उसे सदैव भगवान के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी आदर करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करनी चाहिए।