सागर और पहाड़ भी देते हैं अमूल्य ज्ञान

चाणक्य नीति के श्लोक में बताया गया है कि हम जिस सागर को शांत स्वभाव का मानते हैं। लेकिन प्रलय के समय है वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारे को उजाड़ता हुआ सब कुछ विनाश कर देता है।

उसी तरह व्यक्ति का मन भी होता है। लेकिन एक श्रेष्ठ व्यक्ति संकट के समय में भी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन कभी नहीं करता है। ऐसे ही व्यक्ति को सागर से भी महान कहा जाता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि संकट के समय जो मनुष्य अपने धैर्य को नहीं खोता है और उस संकट का बुद्धिमानी से सामना करता है। वही व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है।

आचार्य चाणक्य ने बताया है कि जिस तरह पर्वत पर मणि-माणिक्य और सोना चांदी नहीं मिलते हैं। जिस तरह हर हाथी के मस्तक पर मुक्तामणि नहीं होती है।

साथ ही जिस तरह संसार में व्यक्ति की कमी ना होते हुए भी साधु पुरुष नहीं मिलते हैं।

उसी प्रकार वन के भीतर चंदन के वृक्ष हर जगह मौजूद नहीं होते हैं। इसलिए व्यक्ति के पास जो है और जो उसने अर्जित किया है, उसी मैं उसको संतुष्ट रहना चाहिए।

अगर वह सीमाओं से भी अधिक के पीछे भागता है तो वह ना तो सफलता हासिल कर पाता और ना ही अपने विचारों को काबू में रख पाता है।