बच्चों के लिए दुश्मन की तरह होते हैं ऐसे माता-पिता 

चाणक्य ने इस श्लोक में बताया है कि जिन माता पिता ने अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, वे बच्चों के शत्रु के समान होते हैं।

अशिक्षित बच्चों को यदि विद्वानों के साथ बैठा दिया जाए तो वे तिरस्कृत महसूस करते हैं। विद्वानों के समूह में अशिक्षित बच्चों की वही स्थिति होती है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है।

इसलिए माता-पिता को बच्चों की शिक्षा पर जरूर ध्यान देना चाहिए।

चाणक्य नीति की इस श्लोक के अनुसार बच्चों में बचपन से जैसे बीज बोए जाएंगे वैसे ही फल सामने आएंगे। 

इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएं, जिससे उनमें शील स्वभाव का विकास हो।

यदि बच्चों को ज्यादा प्यार दुलार करो तो वह बिगड़ जाते हैं और मनमौजी हो जाते हैं।

चाणक्य के अनुसार बच्चे यदि कोई गलत काम करते हैं तो उन्हें पहले ही समझा-बुझाकर उस गलत काम से दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

गलत कार्य करने पर बच्चों को डांटना भी चाहिए, ताकि उन्हें सही-गलत की समझ आए।

चाणक्य नीति की इस श्लोक के अनुसार बच्चों में बचपन से जैसे बीज बोए जाएंगे वैसे ही फल सामने आएंगे। 

जिन माता-पिता ने अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया हो, उन्हें पुत्र से भी किसी बात की आशा नहीं करनी चाहिए।