https://www.fapjunk.com https://fapmeister.com

16 सोमवार व्रत कथा (सोलह सोमवार व्रत कथा) – Solah Somvar Vrat Katha

16 Somvar Vrat Katha – सोमवार व्रत की शुरुआत श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से की जाती है। कहा जाता है कि इस व्रत को 16 सोमवार तक श्रद्धापूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यहां जानिए सोलह सोमवार व्रत की कथा –

सोलह सोमवार व्रत कथा हिंदी में (Solah Somvar Vrat Katha In Hindi Mein)

एक समय की बात है, भगवान शिव माता पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए पृथ्वी पर अमरावती नगरी में आये, वहां के राजा ने भगवान शिव का एक मंदिर बनवाया था। शंकर जी वहीं रुक गये। एक दिन पार्वती जी ने शिव जी से कहा- नाथ! चलो आज चौसर खेलते हैं। खेल शुरू हुआ, उसी समय पुजारी पूजा करने आये।

पार्वती जी ने पूछा – पुजारी जी! बताओ कौन जीतेगा? उन्होंने कहा कि शंकर जी की, लेकिन अंत में पार्वती जी की जीत हुई। पार्वती ने पुजारी को उसकी झूठी भविष्यवाणी के कारण कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया और वह कोढ़ी बन गया। कुछ समय बाद स्वर्ग से देवदूत उसी मंदिर में पूजा करने आए और पुजारी को देखकर उससे कोढ़ी होने का कारण पूछा।

- Advertisement -

उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए पुजारी ने पूरी कहानी बतायी। तब अप्सराओं ने उन्हें सोलह सोमवार के व्रत के बारे में बताया और अपने कष्टों से मुक्ति के लिए महादेव से प्रार्थना करने को कहा। पुजारी ने जिज्ञासावश व्रत की विधि पूछी। अप्सरा ने कहा- सोमवार का व्रत बिना अन्न-जल ग्रहण किए करें और शाम को पूजा के बाद आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा और मिट्टी की तीन मूर्तियां बनाकर चंदन, चावल, घी, गुड़, दीपक, बेलपत्र आदि से भोले बाबा की पूजा करें।

बाद में भगवान शंकर को चूरमे का भोग लगाएं और फिर इस प्रसाद को 3 हिस्सों में बांट लें, एक हिस्सा लोगों में बांट दें, दूसरा हिस्सा गाय को खिला दें और तीसरा हिस्सा खुद खाकर पानी पी लें। यह विधि सोलह सोमवार तक करें और सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर प्रसाद के रूप में बांट दें। फिर परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें। ऐसा करने से भगवान शिव आपकी मनोकामना पूरी करेंगे। यह कहकर अप्सरा स्वर्ग चली गई।

- Advertisement -

पुजारी ने विधि-विधान से व्रत-पूजन करना शुरू कर दिया और रोग से मुक्त हो गए। कुछ दिनों के बाद शिव और पार्वती पुनः उस मंदिर में आये। पुजारी को स्वस्थ देखकर पार्वती ने उनसे रोगमुक्त होने का कारण पूछा। तब पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार की महिमा का वर्णन किया। जिसके बाद माता पार्वती ने भी यह व्रत किया और इसके फलस्वरूप क्रोधित कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी बन गए।

इस पर कार्तिकेय जी ने भी माता गौरी से पूछा कि क्या कारण है कि मेरा मन आपके चरणों में लगा? जिस पर उन्होंने अपने व्रत के बारे में बताया। तब गौरीपुत्र ने भी व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपना खोया हुआ मित्र मिल गया। मित्र ने भी अचानक मिलने का कारण पूछा और फिर व्रत की विधि जानकर उसने भी विवाह की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया।

व्रत के फलस्वरूप वह विदेश चला गया, वहां राजा की पुत्री का स्वयंवर था। राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि हथिनी जिसे माला पहनायेगी उसी से उसकी पुत्री विवाह करेगी। वह ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से एक ओर बैठ गया। हथिनी ने उस ब्राह्मण कुमार को माला पहनाई। शादी बड़ी धूमधाम से हुई और फिर दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।

एक दिन राजकुमारी ने पूछा – नाथ! तुमने ऐसा कौन सा पुण्य किया जिसके कारण हाथी ने राजकुमारों के स्थान पर तुम्हें चुन लिया? ब्राह्मण ने बताए अनुसार सोलह सोमवार का व्रत किया। राजपुत्री ने पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखा और उसे सर्वगुण संपन्न पुत्र प्राप्त हुआ। जब बेटा बड़ा हुआ तो उसने पूछा- माँ! किस पुण्य से तुमने मुझे प्राप्त किया? राजकुमारी ने अपने पुत्र को भी भगवान शिव के इस व्रत के बारे में बताया।

तब उसके पुत्र ने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया। तभी राजा के दूत आये और उन्हें रानी के रूप में चुन लिया। इसके बाद उनका विवाह सम्पन्न हुआ और राजा की मृत्यु के बाद ब्राह्मण कुमार को राजगद्दी मिली। फिर वह इस व्रत को करता रहा। एक दिन राजा ने अपनी पत्नी से पूजन सामग्री शिव मंदिर ले जाने को कहा, लेकिन उसने दासियों के हाथ भेजवा दी।

जब राजा ने पूजा समाप्त की, तो आकाशवाणी हुई कि वह अपनी पत्नी को बाहर निकाल दे, अन्यथा वह तेरा सत्यानाश कर देगी। प्रभु की आज्ञा मानकर उसने रानी को निष्कासित कर दिया। रानी अपने भाग्य को कोसती हुई नगर की एक बुढ़िया के पास गयी। बुढ़िया ने उसे गरीब देखकर सूत की पोटली उसके सिर पर रखी और बाजार के लिए रवाना किया, लेकिन रास्ते में ही तूफान आ गया और पोटली उड़ गई। बुढ़िया ने उसे डाँटकर भगा दिया।

वहां से जब वह रानी तेली के घर पहुंची तो सारे बर्तन चटक गये, उसने उसे भी बाहर निकाल दिया। जब वह पानी पीने के लिए नदी पर पहुंची तो नदी सूख गई। जब वह झील पर पहुंची तो उसका हाथ लगते ही पानी में कीड़े पड़ गए और उसने वही पानी पीया। जिस पेड़ के नीचे वह आराम करने जाती थी वह सूख जाता था। जंगल और तालाब की यह हालत देखकर चरवाहा उसे मंदिर के गुसाईं के पास ले गया।

सारी कहानी जानने के बाद उन्हें समझ आया कि यह कुलीन अबला आपत्ति की मारी है। फिर उन्होंने धैर्य बाँधकर कहा-बेटी! तुम मेरे घर पर रहो, किसी बात की चिंता मत करो। रानी आश्रम में रहने लगी, लेकिन वह जो कुछ भी छूती उसमें कीड़े लग जाते। गुसाईं जी ने दुःखी होकर पूछा- बेटी! किस देवता के अपराध से तुम्हारी यह दशा हुई? रानी ने कहा- मैंने अपने पति की आज्ञा का उल्लंघन किया और महादेव जी की पूजन में नहीं गयी।

तब गुसाईं जी ने भगवान शिव से प्रार्थना की और कहा – पुत्री! तुम सोलह सोमवार का व्रत करो। रानी ने विधिपूर्वक अपना सोलह सोमवार का व्रत पूरा किया। इसके प्रभाव से राजा को रानी की याद आयी और उसकी खोज में दूत भेजे। रानी को आश्रम में देखकर दूतों ने उनके ठिकाने की जानकारी दी। तब राजा ने जाकर गुसाईंजी से कहा- महाराज! यह मेरी पत्नी है, भगवान शिव के क्रोधित होने के कारण मैंने इसे त्याग दिया था।

अब तो भगवान शंकर की कृपा ही है कि मैं इसे लेने आया हूं। आप इसे जाने की अनुमति दे दीजिये। गुसाईं जी की आज्ञा से राजा-रानी नगर में आये। लोगों ने उनके स्वागत में सारे नगर को सजा दिया, वाद्ययंत्र बजाने लगे और मंगल गीत गाने लगे। इससे भगवान शिव की कृपा से राजा हर वर्ष सोलह सोमवार का व्रत करने लगा और रानी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा और अंत में शिवलोक पहुंच गया। इसी प्रकार जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक सोलह सोमवार व्रत करता है और कथा सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में वह शिवलोक को प्राप्त होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस लेख में हमने आपको 16 सोमवार व्रत कथा (सोलह सोमवार व्रत कथा) – Solah Somvar Vrat Katha बताई है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख 16 सोमवार व्रत कथा (16 Monday Fasting Story In Hindi) अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay in Touch

spot_img

Related Articles

You cannot copy content of this page