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Diwali Kab Ki Hai 2024: कब है दिवाली और क्यों मनाई जाती है? जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथाएं

Diwali Kab Ki Hai 2024: दिवाली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। दीपावली का पावन पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह भारतीयों के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। दिवाली के पावन अवसर पर लोग एक दूसरे को मिठाई और उपहार देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। इस दिन भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में दीपक जलाते हैं और घरों में रोशनी करते हैं। इस त्योहार को रोशनी का त्योहार भी माना जाता है।

हिन्दू धर्म में दिवाली के त्यौहार का विशेष महत्व है। यह त्यौहार पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त होता है।

दिवाली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शाम के समय शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली की रात देवी लक्ष्मी स्वयं धरती पर आती हैं।

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इसलिए दिवाली के दिन घर को साफ-सुथरा और रोशन रखना चाहिए और मुख्य द्वार को सुंदर रंगोली और दीयों से सजाया जाना चाहिए। इस दिन गणेश लक्ष्मी, भगवान कुबेर, भगवान विष्णु, माता सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए सबसे पहले पूजा स्थल या सभी सामग्री को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें।

अब एक लकड़ी की चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद रोली हल्दी से उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। अब चौकी पर माता लक्ष्मी व भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करे। और पानी से भरा कलश भी रखें। अब सबसे पहले देवी लक्ष्मी और गणेश जी को रोली अक्षत लगाएं। धूपबत्ती जलाएं।

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माता लक्ष्मी जी को कमल के फूल और माला और गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें। इत्र लगाएं। फलों – मिठाई अर्पित करें। फिर भगवान की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद भगवान गणेश व देवी लक्ष्मी की आरती और लक्ष्मी की पूजा करने के बाद आपको अपनी तिजोरी और बही खाते की भीपूजा करनी चाहिए। इस तरह दीपावली के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का वरदान देती हैं।

दिवाली कब की है 2024 (Diwali Kab Ka Hai 2024)

वर्ष 2024 में दिवाली 1 नवंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी और अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024 को 15:55 बजे शुरू होगी और 1 नवंबर 2024 को 18:15 बजे समाप्त होगी।

दिवाली तिथि 2024 (Diwali Date In Hindi 2024)

दिन – शुक्रवार, 1 नवंबर 2024
अमावस्या तिथि प्रारंभ – 31 अक्टूबर 2024 को 15:55 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – 1 नवंबर 2024 को 18:15 बजे

दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त 2024 (Diwali Mahanishith Kaal Muhurat 2024)

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त – कोई नहीं
अवधि – 0 घंटे 0 मिनट
महानिशीथ काल – 23:38:56 से 24:30:50 तक
सिंह काल – 24:52:58 से 27:10:38 तक

दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त 2024 (Diwali Shubh Choghadiy Muhurat In Hindi 2024)

प्रातःकाल मुहूर्त्त (चल, लाभ, अमृत): 06:33:26 से 10:41:45 तक
अपराह्न मुहूर्त्त (शुभ): 12:04:32 से 13:27:18 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (चल): 16:12:51 से 17:35:37 तक

दीपावली का महत्व  

दिवाली के तैयारी के कारण घर और घर के आस-पास के स्थानों की विशेष सफाई संभव हो पाती है। वहीं दीपावली का पर्व हमें हमारी परंपरा से जोड़ता है। आराध्य के पराक्रम का बोध कराता है। इस बात का भी बोध कराता है कि अंत में जीत हमेशा सत्य और अच्छाई की होती है।

क्यों मनाई जाती है दिवाली

भारत त्योहारों का देश है। यहां साल भर कई तरह के त्योहार आते रहते हैं लेकिन दीपावली सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। यह त्योहार पांच दिनों तक चलने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। बच्चे और बड़े साल भर इस त्योहार का इंतजार करते हैं। इस पर्व को मनाने की तैयारियां कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। भारतीय नव वर्ष के आधार पर, दिवाली के दिन एक नया वित्तीय वर्ष शुरू होता है। लोगों द्वारा नए बहीखाते दर्ज किए जाते हैं।

दीपावली मनाने का एक कारण है। जैसा कि आप सभी ने कभी न कभी अपने बड़ों से या किताबों में दीवाली मनाने के कारण के बारे में पढ़ा या सुना होगा। अगर आप नहीं जानते हैं तो निश्चिंत रहें कि हम आपको इस लेख में बतायेंगे। दीपावली मनाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इस दिन भगवान श्री मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपनी पत्नी सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे और इस दिन भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी और बुराई का नाश किया था। इसलिए अयोध्यावासियों ने इसी खुशी में दीप जलाकर पूरी अयोध्या को जगमगा दिया और तब से हर साल इस दिन को दिवाली के रूप में मनाया जाता है।

दिवाली के 5 दिन (5 Days Of Diwali In Hindi)

धनतेरस – पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस को एक शुभ दिन माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया है। और इस दिन लोग सोना-चांदी खरीदते हैं। इस दिन कुछ नया खरीदना शुभ माना जाता है।

छोटी दिवाली – छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और देवी काली ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। जिसे पुतला जलाकर मनाया जाता है। लोग भी इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। और बच्चे छोटी दिवाली की शाम को पटाखे फोड़कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं।

दिवाली – दिवाली को अमावस्या के रूप में माना जाता है। और यह भी कहा जाता है कि दिवाली की रात साल की सबसे काली रात मानी जाती है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है और सभी अपने घरों को दीयों से सजाते हैं। और बच्चे भी इस दिन पटाखे फोड़कर इस त्योहार का आनंद लेते हैं।

गोवर्धन पूजा – इस दिन को पूरे भारत में अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने वज्र और वर्षा के देवता इंद्र को पराजित किया और गोवर्धन पर्वत को एक उंगली से उठाकर सभी गोकुल वासियो की रक्षा की। इस दिन भारत में गाय माता की भी पूजा की जाती है।

भाई दूज – भाई दूज का त्योहार भी भारत में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक करती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। यह त्यौहार न केवल हिंदुओं द्वारा बल्कि कई अन्य धर्मों के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है।

दिवाली मनाने के कारण (Reason Of Celebrate Diwali In Hindi)

यह त्योहार हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों का त्योहार है जो हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के दिन आता हैं और इस दिन से हर धर्म का एक विशेष महत्व जुड़ा होता है। साथ ही दीपावली मनाने के पीछे कई कथाएं भी हैं। जिसमें से एक कथा इस प्रकार है –

जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। भगवान राम के घर लौटने की खुशी में, इस दिन भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के वनवास के बाद सफलतापूर्वक अपने जन्म स्थान अयोध्या लौटे थे और उनके आगमन की खुशी में, अयोध्या के निवासियों ने दिवाली मनाई थी । तभी से हमारे देश में यह पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

माता लक्ष्मी का जन्मदिन और विवाह – इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था और उनका विवाह भी इसी दिन भगवान विष्णु के साथ हुआ था। जहां कहा जाता है कि हर साल सभी लोग इन दोनों के विवाह को अपने घरों में दीप जलाकर मनाते हैं।

जैन धर्म में पूजनीय और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक जैन धर्म के लोगों के लिए एक विशेष दिन, जिन्होंने दिवाली के दिन निर्वाण प्राप्त किया था और अपने धर्म के लिए इस दिन को महत्वपूर्ण बना दिया था।

सिखों के लिए खास दिन – इस दिन को सिख धर्म के गुरु अमरदास ने रेड-लेटर-डे के रूप में स्थापित किया था, जिसके बाद इस दिन सभी सिख अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

पांडवों का वनवास हुआ था पूर्ण – महाभारत के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन ही पांडवों का वनवास पूरा हुआ था और उनके बारह वर्ष का वनवास पूरा होने की खुशी में उनके चाहने वालों ने अपने घरों में दीपक जलाए थे

विक्रमादित्य का राज तिलक – हमारे देश के महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य पर राज किया था। इसी दिन उनका राज तिलक किया गया था।

कृष्ण ने नरकासुर का किया था वध – देवकी नंदन श्री कृष्ण ने दीवाली से एक दिन पहले राक्षस नरकासुर का वध किया था। जिसके बाद यह पर्व धूमधाम से मनाया गया।

फसलों का त्योहार – यह त्योहार खरीफ की फसल के समय ही आता है और यह त्योहार किसानों के लिए समृद्धि का प्रतीक है और इस त्योहार को किसान उत्साह के साथ मनाते हैं।

हिंदू नव वर्ष दिवस – दिवाली हिंदू व्यवसायी के नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और व्यवसायी इस दिन अपने नए खातों की शुरुआत करते हैं और नए साल की शुरुआत से पहले अपने सभी ऋणों का भुगतान करते हैं।

दिवाली की सबसे लोकप्रिय कथा

दिवाली मनाने के कारणों में सबसे लोकप्रिय कहानी यह है कि त्रेता युग में प्रभु राम द्वारा रावण का वध कर माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चौदह साल बाद भगवान राम के अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में पूरी अयोध्या नगरी को फूलों और दीपों से सजाया गया था। तब से हर साल कार्तिक अमावस्या को दिवाली मनाई जाने लगी।

दिवाली का अर्थ

दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ और ‘आवली’ के मेल से बना है। आवली का अर्थ है पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है दीपों की पंक्ति। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं।

लेकिन आधुनिकता की दौड़ में दीवाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण दीपक बनाने वाले कुम्हार और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ अपने घरों की रोशनी से वंचित हैं और अपनी पुश्तैनी कला और व्यवसाय से दूर हो रहे हैं। कुम्हारों के लिए दीपावली सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि आजीविका का साधन है।

अमावस्या की अँधेरी रात में असंख्य दीप जगमगा उठते है। यह त्योहार लगभग सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस त्योहार के आने के कई दिन पहले से ही घरों की रंगाई-पुताई और साज-सज्जा शुरू हो जाती है। इस दिन पहनने के लिए नए कपड़े और मिठाइयां बनाई जाती हैं।

इस दिन लोग अपने घरों में रोशनी करते हैं और धन की देवी लक्ष्मी और गौरी के पुत्र, भगवान गणेश, की पूजा करते हैं।

दीपावली का पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है। दीपावली का पर्व धनतेरस से भाई दूज तक चलता रहता है। धनतेरस के दिन व्यवसायी अपनी नया बही खाता बनाते हैं। नरक चौदस के अगले दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना अच्छा माना जाता है। अमावस्या यानी दीपावली का मुख्य दिन इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है।

खिल – बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। फुलझड़ीए पटाखे छोड़े जाते हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की साज-सज्जा दर्शनीय बनी रहती है। अगले दिन फिर आपसी मुलाकात का दिन है। एक दूसरे को गले लगाकर दीवाली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद भूलकर इस पर्व को मनाते हैं।

दीपावली का पर्व सभी के जीवन में खुशियां लेकर आता है। नया जीवन जीने का उत्साह देता है। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं जो घर और समाज के लिए अशुभ होता है। हमें इस बुराई से बचना चाहिए। आतिशबाजी सावधानी से छोड़नी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य और व्यवहार से किसी को ठेस न पहुंचे, तभी दीपावली का पर्व मानना सार्थक होगा।

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