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Mahashivratri Kab Hai 2024: 2024 में महाशिवरात्रि कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि सहित बहुत कुछ

Maha Shivratri Kab Hai 2024: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव बहुत दयालु और कृपालु भगवान हैं। वे एक लोटा जल से भी खुश हो जाते हैं। हर माह में आने वाली मासिक शिवरात्रि के साथ ही साल में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का भी विशेष महत्व है। आपको बता दें कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। चलिए जानते हैं महाशिवरात्रि की पूजा की तिथि, शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में।

Maha Shivratri Kab Hai 2024 | Mahashivratri Kab Hai 2024

महाशिवरात्रि कब है 2024? (Maha Shivratri Kab Hai 2024)

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महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इसलिए वर्ष 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।

महाशिवरात्रि 2024 तिथि (Maha Shivratri Date 2024 )

हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष 2024 में महाशिवरात्रि तिथि 08 मार्च को रात 9 बजकर 57 मिनट पर प्रारंभ होगी और चतुर्दशी तिथि 9 मार्च को शाम 06 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी।

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फाल्गुन मास 2024 महाशिवरात्रि चतुर्दशी तिथि आरंभ – 8 मार्च 2024 9:57 PM
फाल्गुन मास 2024 महाशिवरात्रि चतुर्दशी तिथि समाप्त – 9 मार्च 2024 6:17 PM

महाशिवरात्रि पूजन शुभ मुहूर्त 2024 (Maha Shivratri Pujan Shubh Muhurat 2024)

प्रथम प्रहर की पूजा- 6:25 PM से 9:28 PM तक (8 मार्च 2024)

द्वितीय प्रहर की पूजा – 9:28 PM (8 मार्च 2024) से 12:31 AM तक ( 9 मार्च 2024)

तीसरे प्रहर की पूजा- 12:31 AM से 3:34 AM तक (9 मार्च 2024)

चतुर्थ प्रहर की पूजा – 3:3 AM से 6:37 AM  तक (9 मार्च 2024)

पारण समय – 06:38 से 15:30 तक (9 मार्च 2024)

महा शिवरात्रि पूजा विधि (Maha Shivratri Puja Vidhi)

फाल्गुन के महीने में पड़ने वाली महा शिवरात्रि को साल की सबसे बड़ी शिवरात्रि में से एक माना जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके जल से भरा कलश घर के पूजा स्थल पर स्थापित करें। इसके पश्चात भगवान शिव व माँ पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें। फिर अक्षत, रोली, मौली, चंदन, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, दूध, दही, शहद, घी, धतूरा, बेलपत्र, कमलगट्टा आदि भगवान को अर्पित करें। पूजन करें और अंत में आरती करें।

सुबह से ही महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में जल भरकर, बेलपत्र, आक-धतूरा के फूल, चावल आदि शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यदि पास में शिवलिंग न हो तो शुद्ध गीली मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजा करने का विधान है।

इस दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था। इसलिए रात में शिव की बारात निकाली जाती है। रात्रि में पूजा के बाद फलाहार किया जाता है। अगले दिन सुबह जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

शिवजी का प्रिय बेल

बेल (बिल्व) के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार जब उसे जंगल में देर हो गई, तो उसने एक बेल के पेड़ पर रात बिताने का फैसला किया। जागते रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची की – वह एक-एक कर पत्तों को तोड़कर रात भर नीचे फेंकता जाएगा। पौराणिक कथा के अनुसार बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर मनपसंद पत्तों का चढ़ावा देखकर शिव प्रसन्न हुए। जबकि शिकारी को अपने शुभ कर्म का आभास भी नहीं था। शिव ने उन्हें उनकी मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। यह कहानी बताती है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।

महाशिवरात्रि क्या है? (What Is Maha Shivratri In Hindi)

महाशिवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो कि शिव से जुड़ा हुआ है। शिवरात्रि का मतलब भी ‘शिव की रात्रि’ ही होता हैं। पूरे देश भर में शिवरात्रि को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है। भगवान भोलेनाथ की इस दिन आराधना की जाती है। व जागरण होते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के मंदिरों में काफी सारे भक्त आते हैं। और इस दिन कुछ मंदिरों में भक्तों की संख्या हजारों लाखों में होती है।

सप्ताह के सभी दिन भगवान शिव की उपासना के लिए अच्छे माने जाते हैं। पर शिव की आराधना का सोमवार को एक विशेष महत्व होता है। शायद आपको याद नहीं होगा पर एक शिवरात्रि हर महीने आती हैं। भारतीय महीनों के मुताबिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि माना जाता है। वहीं फाल्गुन माह में आने वाले कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा की जाती हैं।

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? (Maha Shivratri Kyu Manai Jati Hai)

हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन या अमावस्या से पहले का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सारी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च के महीने में आती है। ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस रात इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के अंदर ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है जब मनुष्य को प्रकृति उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। इस वक्त का उपयोग करने के लिए, हम इस परंपरा में एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात्रि चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा मौका मिले – निरंतर जागते रहते हैं – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए।

क्यों मनाते है महाशिवरात्रि? (Maha Shivratri Kyu Manate Hai)

महाशिवरात्रि की अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मान्यता मानी गई है। कहते है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था। भारतीय ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को निराकार से साकार रूप में आए थे।

इस मान्यता के चलते इस दिन भगवान शिव अपने विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग में प्रकट हुए थे। कुछ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि का निर्माण इसी दिन से ही हुआ था। ऐसी मान्यता हैं की भगवान शिव इसी दिन करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्व वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे।

भारतीय मान्यता के मुताबिक सूर्य व चंद्र फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ज्यादा नजदीक रहते हैं। शीतल चन्द्रमा व रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन इस दिन को माना जाता हैं। इसलिए इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं।

महाशिवरात्रि की रात क्यों है इतनी खास?

रात्रि का महाशिवरात्रि पर्व में खास महत्व है। हिन्दू धर्म में रात्रि में होने वाले विवाह का मुहूर्त शादी के लिए बहुत ही उत्तम माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण की चतुर्दशी तिथि की रात्रि को माता पार्वती के साथ भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ था। पंचांग के मुताबिक जिस दिन फाल्गुन माह की मध्य रात्रि मतलब निशीथ काल में होती है उस दिन को ही महाशिवरात्रि  माना जाता है।

शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है महाशिवरात्रि

भारत को देवताओं की भूमि कहा जाता है। यहां के ग्रंथों और पुराणों में भगवान के अवतार की कहानियां यह प्रमाणित करती हैं कि भारत की भूमि इतनी पवित्र है कि देवता भी यहां अवतार लेने के लिए ललायित रहते हैं। आज इस सोने की चिड़िया को घर के दलालों ने ने नोंच डाला है। लेकिन इस देश का इतिहास सदैव इसकी स्वर्ण गाथा गाता रहेगा। हमारे लिए इस देश का पौराणिक इतिहास विशेष महत्व रखता है।

भगवान शिव को प्रलय का देवता और बहुत गुस्से वाला देवता माना जाता है। लेकिन जिस तरह नारियल बाहर से बहुत सख्त और अंदर से बहुत नरम होता है। उसी तरह शिव शंकर भी प्रलय के देवता के साथ-साथ भोले नाथ भी हैं। थोड़ी सी भक्ति से भी वह बहुत प्रसन्न हो जाते है। और यही कारण है कि शिव को सूर और असुर दोनों समान रूप से पूजते हैं।

शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सभी का कल्याण करने वाले हैं। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महान पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि का महत्व (Importance Of Maha Shivratri In Hindi)

शिव पुराण में उल्लेख है कि शिव के निष्कल (निराकार) रूप का प्रतीक ‘लिंग’ इस पवित्र तिथि की महानिशा में प्रकट हुआ और सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु ने उसकी पूजा की। इसलिए यह तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दिन को देवी पार्वती व शिव के विवाह की तिथि के रूप में भी पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त अपनी पूरी शक्ति और साम‌र्थ्य के साथ भगवान शिव की पूजा करता है। उसे पूरे वर्ष शिव की पूजा का पूरा फल तुरंत शिवरात्रि पर मिलता है।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व – इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो इस दिन का यौगिक परंपराओं में विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि आध्यात्मिक साधक के लिए इसमें बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से गुजरते हुए, उस बिंदु पर आज आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि जिसे भी जीवन के रूप में आप जानते हैं, पदार्थ व अस्तित्व के रूप में जानते हैं। जिसे आप तारामंडल और ब्रह्माण्ड के रूप में जानते हैं। वह सब सिर्फ एक ऊर्जा है, जो खुद को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। प्रत्येक योगी के लिए यह वैज्ञानिक तथ्य एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से मतलब उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो किसी ख़ास अभ्यास या तंत्र की बात मैं नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को और अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सम्पूर्ण चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, मनुष्य को इसी का अनुभव पाने का मौका देती है।

महाशिवरात्रि की कथा (Maha shivratri Story In Hindi)

#1 – हर भारतीय त्योहार की तरह महाशिवरात्रि को लेकर भी काफी सारी मान्यताएं प्रचलित है। महाशिवरात्रि से प्राचीन ग्रंथों के कई कथाएं जुड़ी हुई है। महाशिवरात्रि को लेकर सबसे प्रचलित कथा भोलेनाथ के जन्म की मानी जाती है। कई ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव महाशिवरात्रि के दिन ही पहली बार प्रकट हुए थे। इस दिन भगवान शिवअपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप अग्निलिंग के रूप में सामने आये थे। न तो जिसका कोई आदि था और न ही कोई अंत।

इसके अलावा एक कथा यह भी कहती हैं की फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक साथ 64 जगहों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे। हमे अभी तक इनमे से 12 के विषय में ही ज्ञान हैं जिन्हें ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के रूप में भी मनाया जाता हैं। कहा जाता हैं की शिव ने इस दिन ही अपना वैराग्य छोड़कर शक्ति से शादी की थी व अपना सांसारिक जीवन आरम्भ किया था।

#2 – दरअसल, कई पुराणों में बहुत सारी कथाएं महाशिवरात्रि मनाए जाने के संबंध में प्रचलित हैं। भागवत् पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। पूरे आकाश में विष की यह आग की ज्वालाएं फैलकर सारे जगत को जलाने लगी। इसके पश्चात सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास सहायता के लिए गए। इसके पश्चात भगवान शिव प्रसन्न हुए व उस विष को पी लिया। इसके बाद से ही भोलेनाथ को नीलकंठ कहा जाने लगा। इस बड़ी विपदा को शिव द्वारा झेलने व गरल विष की शांति के लिए सभी देवों ने उस चंद्रमा की चांदनी में रात भर शिव का गुणगान किया। और वह महान रात्रि ही शिवरात्रि के नाम से जानी गई।

#3 – लिंग पुराण के मुताबिक एक बार ब्रह्मा व विष्णु दोनों में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में से बड़ा कौन है। स्थिति यंहा तक पहुंच गई कि दोनों ही भगवान ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का उपयोग कर युद्ध घोषित कर दिया। जिसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। भगवान शिव देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध पर इस विवाद को समाप्त करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। जिस लिंग का न तो कोई आदि था और न ही कोई अंत था।

इस लिंग को देखकर ब्रह्मा विष्णु दोनों ही यह नहीं समझ पाए की यह क्या चीज है। इसके बाद सूकर का रूप धारण कर भगवान विष्णु नीचे की ओर उतरे जबकि ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर यह जानने के लिए उड़े कि इस लिंग का प्रप्राम्भ कहां से हुआ है व इसका अंत कहां है। जब सफलता दोनों को ही नहीं मिली तब दोनों ने ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया। इसी दौरान ऊं की ध्वनि उसमें से सुनाई दी। ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही आश्चर्यचकित हो गए। इसके पश्चात उन्होंने देखा कि लिंग के दाहिने तरफ आकार, बायीं ओर उकार व मध्य में मकार है। अकार सूर्यमंडल की तरह, उकार अग्नि की तरह और मकार चंद्रमा की तरह चमक रहा था। और भगवान शिव को उन तीन कार्यों पर शुद्ध स्फटिक की तरह देखा।

ब्रह्मा और विष्णु इस अदभुत दृश्य को देख अति प्रसन्न हो शिव की स्तुति करने लगे। शिव ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा और विष्णु दोनों को अचल भक्ति का वरदान दिया। प्रथम बार शिव को ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने पर इसे शिवरात्रि के रूप में मनाया गया। लोकल्याण उदारता और धैर्यता का प्रतीक शिवरात्रि को माना जाता है।

महाशिवरात्रि उपाय (Maha shivratri Upay)

महाशिवरात्रि पर करें पूजा – शिवपुराण में महाशिवरात्रि के प्रत्येक चरण में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह, दोपहर, शाम और रात इन चारों प्रहरों में रुद्राष्टाध्यायी पाठ के साथ दूध, गंगाजल, शहद, दही या घी जैसे विभिन्न पदार्थों से भगवान शिव का अभिषेक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यदि आप रुद्राष्टाध्यायी का पाठ नहीं कर पा रहे हैं, तो आप शिव षडक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए भी भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि पर रुद्राक्ष धारण करें – रुद्राक्ष में भगवान शिव का वास माना जाता है। इसलिए महाशिवरात्रि को रुद्राक्ष धारण करने और ‘ॐ नमः शिवाय ‘का जाप करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। जो लोग धन और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से गुजर रहे हैं। उन्हें छह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इस रुद्राक्ष को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग को छूकर धारण करने से शीघ्र ही प्रभाव दिखने लगता है। छह मुखी रुद्राक्ष को कुमार कार्तिक का रूप माना जाता है। ज्योतिष की दृष्टि से यह शुक्र ग्रह से प्रभावित है। शुक्र सुख और वैभव का दाता और महामृत्युंजय मंत्र का ज्ञाता है। इसलिए इस रुद्राक्ष को धारण करने से धन और स्वास्थ्य दोनों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

धन और सुख के लिए करें इस शिवलिंग की पूजा – भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए शिवलिंग की पूजा सबसे उत्तम मानी जाती है। यदि इसमें स्फटिक शिवलिंग हो तो यह और भी फलदायी होता है। आप घर में भी स्फटिक शिवलिंग स्थापित कर सकते हैं। महाशिवरात्रि के दिन घर में एक स्फटिक शिवलिंग स्थापित करें और उसकी नियमित पूजा करें, तो घर से सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाएंगे। इससे धन और सुख में आ रही रुकावटें दूर होंगी। वास्तु शास्त्र में स्फटिक शिवलिंग को वास्तु दोषों से मुक्ति दिलाने वाला बताया गया है। जिस घर में यह शिवलिंग स्थित होता है। उस घर में किसी भी प्रकार के वास्तु दोष का अशुभ प्रभाव नहीं होता है।

इस मंत्र का जाप करें – षडाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले मंत्रों में सबसे आसान मंत्र है। इस मंत्र की एक माला का नियमित जप करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन किसी मंदिर में बैठकर इस मंत्र का डेढ़ लाख जप करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है। यदि मंदिर में जाप करना संभव न हो तो आप किसी गौशाला या नदी तट पर बैठकर इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। अगर यह भी संभव न हो तो घर में भी इस मंत्र का जाप किया जा सकता है। घर पर ध्यान केंद्रित करना कठिन होता है इसलिए घर को नामजप के अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाता है। इस मंत्र के जाप से धन और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां में कमी आती हैं।

लंबी उम्र के लिए करें इस सिद्ध मंत्र का जाप करें – महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का चमत्कारी मंत्र है। शास्त्रों में बताया गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो उसे भी इस मंत्र से पुनर्जीवित किया जा सकता है। असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने इस मंत्र की शक्ति से कई बार देवसुर युद्ध में देवताओं द्वारा मारे गए राक्षसों को पुनर्जीवित किया था। महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंत्र का डेढ़ लाख जप करने से व्यक्ति को रोग, शोक और कई तरह के कष्टों से मुक्ति मिल सकती है। यदि आप नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करते हैं, तो आप जीवन में सभी बाधाओं से मुक्त हो जाएंगे।

महा शिवरात्रि के दिन भूलकर भी न करें ये काम

  • बहुत से लोग शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को ग्रहण कर लेते हैं। लेकिन आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे आप दुर्भाग्य के मुख में प्रवेश करते हैं।
  • शास्त्रों में कहा गया है कि शिवलिंग पर कभी भी तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। शिव को अर्पित किए जाने वाले पंचामृत में भी तुलसी का प्रयोग न करें।
  • शिवलिंग पर चंपा और केतली के फूल नहीं चढ़ाएं। इसके बजाय आपको शिव के पसंदीदा फल – फूल धतूरे, बेलपत्र और भांग चढ़ाएं
  • शिवलिंग पर हल्दी से अभिषेक करना भी वर्जित माना गया है। इसके बजाय शिव को चंदन का तिलक लगाएं।
  • शिवरात्रि के व्रत के दौरान व्रत में चावल, दाल और गेहूं का सेवन नहीं करना चाहिए। आप फल, दूध और चाय पी सकते हैं।
  • व्रत रखने वालों को इस दिन तेल के स्थान पर देसी घी का प्रयोग करना चाहिए।

FAQs For Mahashivratri Kab Hai

महाशिवरात्रि क्या है?
महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है।

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है?
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

2024 में महाशिवरात्रि कब है?
2024 में 8 मार्च 2024, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।

निष्कर्ष

इस लेख में हमने आपको महाशिवरात्रि कब है 2024 (Mahashivratri Kab Hai 2024) के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख महाशिवरात्रि इन हिंदी अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

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