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नमामि शमीशान निर्वाण रूपं लिरिक्स इन हिंदी (Namami Shamishan Nirvan Roopam Lyrics In Sanskrit In Hindi)

Namami Shamishan Nirvan Roopam Lyrics In Hindi: सनातन धर्म में सभी देवताओं में भगवान शिव शंकर को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि इससे भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। यदि कोई भक्त उन्हें श्रद्धापूर्वक एक लौटा जल भी अर्पित करता है तब भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है।

यदि आप भगवान शिव की विशेष कृपा पाना चाहते हैं तो आपको ‘श्री शिव रुद्राष्टकम’ का पाठ करना चाहिए। ‘शिव रुद्राष्टकम’ अपने आप में एक अद्भुत स्तुति है। यदि कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा हो तो किसी शिव मंदिर में या घर में कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह-शाम रुद्राष्टकम स्तुति का पाठ करते रहने से शिव बड़े से बड़े शत्रुओं का पल भर में नाश कर देते हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

रामायण के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में एक शिवलिंग की स्थापना की और रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए भक्ति के साथ रुद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया और परिणामस्वरूप, शिव की कृपा से रावण का वध हुआ। तो आइये जानते है नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् इन हिंदी –

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं लिरिक्स इन हिंदी (Namami Shamishan Nirvan Roopam Lyrics In Sanskrit In Hindi)

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नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।

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तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।।

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।

प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।।
चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।9।।

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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