https://www.fapjunk.com https://fapmeister.com

संधि के प्रकार (Sandhi Ke Prakar) – संधि कितने प्रकार की होती है?

Sandhi Ke Prakar Hindi Mein – आज के इस लेख में हम आपको संधि के प्रकार – संधि कितने प्रकार की होती है आदि के बारे में जानकारी देने वाले है। अगर आप उपरोक्त जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो आज के इस लेख संधि के प्रकार (Types Of Sandhi In Hindi) के अंत तक बने रहे। तो आइये जानते है –

संधि क्या है / संधि क्या होती है (Sandhi Kya Hai / Sandhi Kya Hoti Hai)

संधि का अर्थ है जोड़ या मेल, सम् + धि से मिलकर संधि शब्द बनता है। जब निकटवर्ती वर्णों (शब्दों) के परस्पर संयोग (योग या मेल) से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।

जब दो शब्द मिलकर एक शब्द बनाते हैं तो उसे संधि-विच्छेद कहते हैं। उदाहरणार्थ, विद्या + आलय = विद्यालय।

संधि कितने प्रकार की होती है हिंदी में (Sandhi Kitne Prakar Ke Hote Hain)

- Advertisement -

संधि मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है, इनके नाम निम्नलिखित है –

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

आइये अब इनके बारे में थोड़ा विस्तार से जानते है –

1) स्वर संधि (Swar Sandhi)

- Advertisement -

दो स्वरों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय। स्वर संधि पांच प्रकार की होती है –

  • दीर्घ संधि
  • गुण संधि
  • वृद्धि संधि
  • यण संधि
  • अयादि संधि

A) दीर्घ संधि – जब दो स्वर्ण मिलकर दीर्घ बन जाते हैं तो उसे दीर्घ संधि कहते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आये तो दोनों मिलकर आ, इ और उ हो जाते हैं। जैसे की – ई + ई = ई (नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश)।

B) गुण संधि – जब अ और आ के बाद इ, ई या उ, ऊ या ऋ आ जाए तो दोनों मिलकर ए, ओ और अर बन जाते हैं, इस संयोजन या मेल को गुण संधि कहा जाता है। जैसे की – अ + इ = ए (योग + इंद्र = योगेंद्र),अ + ऋ = अर्स (प्त + ऋषि = सप्तर्षी)।

C) वृद्धि संधि – यदि अ, आ के बाद ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहा जाता है। जैसे की – अ + ऐ = ऐ (हित + ऐषी = हितैषी), अ + ओ = औ (महा + औषधि = महौषधि)।

D) यण संधि – यदि इ, ई या उ, ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो इ और ई का ‘य्’, उ और ऊ का ‘व्’ और ऋ का ‘र्’ हो जाए तो उसे यण संधि कहते हैं। जैसे की – ऋ + अ = र् + आ (पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा)।

E) अयादि संधि – यदि ए, ऐ और ओ, औ के बाद कोई स्वर आता है, तो ऐ के साथ “अय्”, “ओ” के साथ अव, “ऐ” के साथ आय, और “औ” के साथ मिलकर आव हो जाता है। तो उसे अयादि संधि कहा जाता है। जैसे की – ओ + अ = अव् + अ ; पो + अन = पवन।

2) व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi)

व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन के संयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे की – अभि +सेक = अभिषेक।

व्यंजन संधि के नियम –

अगर म् के बाद कोई भी व्यंजन म तक हो तो उसी वर्ग अनुसार लिखा जाता है। जैसे की -सम्+पादक = संपादक, किम्+ तु = किंतु, आदि।

यदि सम्+’कृ’ से बनने वाले शब्द जैसे- कृत, कार, कृति, कर्ता, कारक आदि बने तो म् का अनुस्वार तथा बाद में स् का आगम हता है। जैसे की – सम्+कर्ता = संस्कर्ता आदि।

यदि क्, च्, ट्, त्, प् के पश्चात तीसरा या फिर चौथा वर्ण या य्, र्, ल्, व् हो या कोई स्वर हो तो उस वर्ग का तीसरा वर्ण बन जाता है। जैसे की – वाक्+ईश = वागीश, अच्+अंत = अजंत आदि।

यदि म् के पश्चात कोई भी अन्तस्थ व्यंजन (य्,र,ल,व) या कोई भी ऊष्म व्यंजन (श्,स,ष,ह) हो तो म् अनुस्वार हो जाता है। जैसे की – सम्+मति = सम्मति आदि।

यदि स व्यंजन से पूर्व अ, आ से पृथक कोई स्वर आ जाए तो स का ‘ष’ हो जाता है।
जैसे की – अनु+संगी = अनुषंगी आदि।

अगर किसी स्वर के बाद छ वर्ण आ जाए तो छ से पूर्व च् वर्ण जुड़ जाता है ।
जैसे की परि+छेद = परिच्छेद।

अगर ऋ, र्, ष् के बाद न् व्यंजन आता है तो वह ण् हो जाता है। जैसे की – परि+नाम = भूष+न = भूषण।

अगर वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल न् या म् वर्ण से हो जाता है तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे की – उत्+नायक = नायक, षट्+मुख = षण्मुख आदि।

अगर ष् के पश्चात टी हो और ष् के बाद थ हो तो टी का ट तथा थ का ठ हो जाता है।
जैसे की सृष्+ति = सृष्टि, तुष्+त = तुष्ट आदि।

3) विसर्ग संधि (Visarg Sandhi)

विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के मेल होने पर विसर्ग में जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है उसे विसर्ग संधि कहा जाता हैं। जैसे की – मनः + अनुकूल = मनोनुकूल, दु:+उपयोग = दुरुपयोग।

विसर्ग संधि के नियम –

विसर्ग से पूर्व अ या आ हो और विसर्ग के पश्चात अ ,आ को छोड़कर कोई अलग स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे की – अत:+एव = अतएव, तत:+एव = ततएव आदि।

यदि विसर्ग के पूर्व इ या उ हो और पश्चात में श हो तो विसर्ग को वैसे का वैसा ही लिखा जाता है। जैसे की – निः+शक्त = निःशक्त , दु:+शासन = दु:शासन।

विसर्ग के पूर्व अ या आ हो और विसर्ग के पश्चात क या प हो तो विसर्ग का स् हो जाता है। जैसे – वन:+पति = वनस्पति, तिर:+कार = तिरस्कार आदि।

विसर्ग के पूर्व इ या उ स्वर हो और विसर्ग के पश्चात कोई भी 3,4 वर्ण हो य,र,ल,व, ह हो या अत: और पुनः शब्द हो तो विसर्ग का र् बन जाता है। जैसे की – अत:+आत्मा = अंतरात्मा, पुनः+उक्ति = पुनरुक्ति, निः+धन = निर्धन

यदि विसर्ग से पूर्व इ, उ और पचात में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष बन जाता है। जैसे की – निः+फल= निष्फल, चतुः+कोण = चतुष्कोण, चतुः+पाद = चतुष्पाद

अगर विसर्ग के पूर्व अ स्वर और आगे अ या कोई सघोष व्यंजन अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो अ और विसर्ग(:) के जगह ओ बन जाता है। जैसे की – मनः +बल = मनोबल , पय:+धि = पयोधि, तप:+भूमि = तपोभूमि

विसर्ग के पूर्व कोई भी स्वर हो और विसर्ग के पश्चात त् हो तो विसर्ग का स् हो जाता है।
जैसे की – अंत:+तल = अंतस्थल, नि:+तारण = निस्तारण।

FAQs

संधियों के 3 प्रकार क्या हैं?
संधियों के 3 प्रकार है – स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि।

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस लेख में हमने आपको संधि के प्रकार – संधि कितने प्रकार की होती है (Sandhi Kitne Prakar Ki Hoti Hai) के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख संधि के प्रकार (Sandhi Types In Hindi) अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay in Touch

spot_img

Related Articles

You cannot copy content of this page