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वायरस क्या है? वायरस के लक्षण, प्रकृति, संरचना और प्रजनन

Virus Kya Hai In Hindi | What Is Virus In Hindi: आज की लेख में वायरस क्या है, वायरस की संरचना का वर्णन, महत्वपूर्ण विशेषताएं, वायरस की प्रकृति, साथ ही वायरस जनन के बारे में जानेंगे। हमारे द्वारा दैनिक जीवन में अक्सर वायरस शब्द का प्रयोग किया जाता है। जिसे हिंदी में विषाणु कहते हैं। कोरोना महामारी के आने के बाद से हर कोई वायरस शब्द से परिचित हो गया है। इस लेख में हम वायरस और उसकी संरचना के बारे में जानने वाले है।

वायरस क्या है? (Virus Kya Hai?)

वायरस या विषाणु शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई है, जिसका अर्थ है घातक विष। इन्फ्लुएंजा, पोलियो, चेचक जैसी कई गंभीर बीमारियां इंसानों में वायरस के कारण होती हैं। वायरस सूक्ष्म जीवों का एक समूह है, जो परजीवी होते हैं। विषाणुओं को न तो पादपों में और न ही जन्तुओं की श्रेणी में रखा जा सकता है।

विषाणु अतिगृश्य, परजीवी, अकोशिकीय और विशिष्ट विशेष कण होते हैं। ये सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी है। वायरस बहुत छोटे रोगाणु होते हैं, जो एक प्रोटीन खोल के अंदर आनुवंशिक सामग्री से बने होते हैं। वायरस की आनुवंशिक सामग्री आरएनए या डीएनए हो सकती है, जो आमतौर पर प्रोटीन, लिपिड या ग्लाइकोप्रोटीन की खोल से घिरी रहती है या तीनों का थोड़ा-थोड़ा कॉम्बिनेशन होता है।

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1867 में पाश्चर ने सबसे पहले कीटों में विषाणु रोगों का अध्ययन किया, जिसे फ्लैचेरी कहा गया । इवानोस्की ने 1892 में इस वायरस की प्रकृति का अध्ययन किया। बाद में कई वैज्ञानिकों ने विभिन्न जन्तुओं में पाए जाने वाले वायरस के बारे में बताया।

वायरस के प्रकार

मेजबान के प्रकार के आधार पर वायरस को वर्गीकृत किया जा सकता है। इसी आधार पर 1948 में होम्स ने वायरस को तीन समूहों में विभाजित किया। वे हैं –

  • जन्तु विषाणु
  • पादप विषाणु
  • जीवाणुभोजी
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जन्तु विषाणु

वे विषाणु जो मनुष्यों सहित पशुओं की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं, जन्तु विषाणु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, इन्फ्लूएंजा वायरस, रेबीज वायरस, मम्प्स वायरस, पोलियो वायरस, चेचक वायरस, हेपेटाइटिस वायरस, राइनो वायरस आदि। उनकी आनुवंशिक सामग्री आरएनए या डीएनए है।

पादप विषाणु

पौधों को संक्रमित करने वाले विषाणु पादप विषाणु कहलाते हैं। उनकी आनुवंशिक सामग्री आरएनए है जो प्रोटीन खोल में रहती है। उदाहरण के लिए, टोबैको मोज़ेक वायरस, पोटैटो वायरस, बनाना बंची टॉप वायरस, टोमैटो येलो लीफ कर्ल वायरस, बीट यलो वायरस और टर्निप येलो वायरस आदि हैं।

पादप विषाणु

बैक्टीरिया या जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित करने वाले वायरस को बैक्टीरियोफेज या बैक्टीरिया खाने वाले (बैक्टीरियोफेज) के रूप में जाना जाता है। उनमें आनुवंशिक सामग्री के रूप में डीएनए होता है। बैक्टीरियोफेज की कई किस्में हैं। आम तौर पर, प्रत्येक प्रकार के बैक्टीरियोफेज केवल एक प्रजाति या बैक्टीरिया के केवल एक स्ट्रेन पर हमला करते हैं।

कैसे फैलता है वायरस

वायरस हमारे शरीर में नाक, मुंह या त्वचा, पर्यावरण से या अन्य व्यक्तियों के माध्यम से, मिट्टी से, पानी या हवा में किसी भी कट के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और एक कोशिका को संक्रमित करने की तलाश करते हैं।

उदाहरण के लिए, एक सर्दी या फ्लू वायरस उन कोशिकाओं को लक्षित करता है जो श्वसन या पाचन नली में होती हैं। एचआईवी (मानव इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस) जो एड्स का कारण बनता है, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं जो संक्रमण और बीमारी से लड़ती हैं) पर हमला करता हैं। वायरस और जीवाणु संक्रमण दोनों मूल रूप से मनुष्यों में एक ही तरह से फैलते हैं।

वायरस निम्नलिखित में से कुछ तरीकों से मनुष्यों में फैल सकते हैं –

  • यह वायरस किसी दूसरे व्यक्ति को छूने या हाथ मिलाने से फैल सकता है। अगर कोई व्यक्ति गंदे हाथों से भोजन को छूता है तो वायरस आंत में भी फैल सकता है।
  • जुकाम वाले व्यक्ति के खांसने या छींकने से वायरस का संक्रमण फैल सकता है।

वायरस की संरचना का वर्णन

वायरस के महत्वपूर्ण लक्षण

वायरस के महत्वपूर्ण भौतिक और रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं वायरस केवल माइक्रोस्कोप के द्वारा देखे जा सकते हैं और बैक्टीरिया से आकार में छोटे होते हैं।

  • फिल्टर्स से छनकर ये बैक्टीरियल निकल जाते हैं।
  • ये अनिवार्य परजीवी हैं, जो केवल जीवित कोशिकाओं में ही वृद्धि और गुणन कर सकते हैं।
  • इन्हें कृत्रिम संवर्धन पर नहीं उगाए जा सकते हैं।
  • वे केवल विशिष्ट प्रकार के पोषक तत्वों और ऊतकों पर हमला करते हैं।
  • इन्हें ताप और रासायनिक पदार्थों द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है।
  • ये परपोषी के प्रति विशिष्टता दिखाते हैं।
  • ये न्यूक्लियों प्रोटीन से बने क्रिस्टल होते हैं।
  • इनमें आनुवंशिक पदार्थ डीएनए या आरएनए होते हैं।

वायरस की प्रकृति

कई वैज्ञानिकों ने वायरस की प्रकृति के बारे में अलग-अलग तरह की राय पेश की है। किसी ने इस वायरस को सजीव माना है तो किसी ने इसे निर्जीव माना है। इस संबंध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए गए हैं –

वायरस के निर्जीव लक्षण

  • इन्हें क्रिस्टल में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।ये पोषक के शरीर के बाहर निष्क्रिय रासायनिक पदार्थों की तरह होते हैं।
  • इसमें श्वसन, प्रकाश संश्लेषण आदि क्रियाएँ नहीं पाई जाती हैं।
  • इसमें कोशिका भित्ति, कोशिका कला और जीवद्रव्य का अभाव रहता है।
  • इसमें एंजाइमेटिक मैकेनिज्म नहीं होता है।

वायरस के सजीव लक्षण

  • वायरस में वृद्धि और जनन की क्रियाएँ जीवित कोशिका के अंदर ही होती है।
  • इनमें ताप, रसायन आदि के प्रति स्टिमुलेशन होता है।
  • जीवित पादप, जानवरों और जीवाणुओं में रोग पैदा करते हैं।
  • इनका आनुवंशिक पदार्थ पुनरावृत्ति करता है।
  • इनमें आरएनए या डीएनए और प्रोटीन होते हैं।
  • पोषक के प्रति विशिष्ट हैं।
  • एक परपोषी से दूसरे परपोषी में संचारित हो जाते हैं।
  • इनमें गुणन और उत्परिवर्तन होता हैं।
  • प्रत्येक वायरस में न्यूक्लिक एसिड होता है, जो प्रोटीन के आवरण से घिरा होता है।

वायरस के आकर एवं माप

वे विभिन्न आकार के होते हैं। गोलाकार, छड़ के आकार से लेकर बहुतलीय, कुण्डलित या सर्पिल आकार के होते हैं। 174 व्यास से लेकर 500 x 121 तक के वाइरस होते हैं।

वायरस की संरचना

वायरस न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन से बने होते हैं। प्रोटीन न्यूक्लिक एसिड के चारों ओर एक आवरण बनाता है, जिसे कैप्सिड कहा जाता है। वायरस के केंद्र में न्यूक्लिक एसिड कोर होता है। आरएनए या डीएनए न्यूक्लिक एसिड में पाए जाते हैं। केंद्रीय कोर और कैप्सिड को संयुक्त रूप से न्यूक्लियोकैप्सिड कहा जाता है।

टोबैको मोज़ेक वायरस की एक बेलनाकार संरचना होती है जिसका व्यास 160 A और लंबाई 3000 A होती है। प्रोटीन आवरण कई (2130) सबयूनिट्स में विभाजित रहता है, जिसे कैप्सोमेरेस कहा जाता है। इनका आरएनए 2130 कैप्सोमीयर्स को कुण्डलित रूप से जोड़ता है। शुष्क भार के अनुसार प्रोटीन 94.5% तथा न्यूक्लिक अम्ल 5.5% होता है।

डीएनए कुछ जन्तु विषाणुओं एवं जीवाणुभोजी में पाया जाता है। वायरस का न्यूक्लिक एसिड आरएनए या डीएनए संक्रामक होता है। यह वायरस के लिए प्रोटीन-संश्लेषण को नियंत्रित करता है और अपने लिए प्रजनन करता है। वायरस पूरी तरह से कार्बोहाइड्रेट और लिपोइड से रहित है। इनमें कोई एंजाइम तंत्र नहीं पाया जाता है। अतः ये पोषक के ही एन्जाइम तंत्र को स्वयं नियंत्रित करके उसकी ऊर्जा से अपना गुणन करते हैं।

वायरस प्रजनन

वायरस केवल पोषक की जीवित कोशिकाओं में ही प्रजनन कर सकते हैं। ये पोषक के बाहर निष्क्रिय होते हैं। पोषक कोशिका में प्रवेश करते हैं और अपना प्रोटीन आवरण छोड़ देते हैं और कोशिका के भीतर न्यूक्लिक अम्ल मुक्त हो जाता है। पोषक कोशिका इस प्रकार वायरस के समान न्यूक्लिक एसिड बनाना शुरू कर देती है और इस प्रकार वायरस का गुणन अलैंगिक विधि से हो जाता है। यह गुणन प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होती है।

प्रारंभिक चरण – इस चरण में वायरस जीनोम गुणन के लिए सक्रिय होता है। इनमें पोषी के डीएनए, आरएनए और प्रोटीन-संश्लेषण को नियंत्रित करके वायरस के अनुसार प्रोटीन-संश्लेषण होता है, फिर वायरस के डीएनए और आरएनए की तरह संश्लेषण होता है।

द्वितीय चरण – इस चरण में वायरस की क्रिया सामने आती है और वायरस जीनोम और प्रोटीन के मिलन से नए वायरस का निर्माण होता है। इस क्रिया को रूपजनन (मार्कोजिनेसिस) कहते हैं। इस तरह नए वायरस का बनना पूरा हो जाता है।

FAQ

वायरस को हिंदी में क्या कहते है?
वायरस हो हिंदी में विषाणु कहा जाता है।

विषाणु को अंग्रेजी में क्या कहते है?
विषाणु को अंग्रेजी वायरस कहा जाता है।

निष्कर्ष

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लेख के अंत तक बने रहने के लिए आपका धन्यवाद

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