भगवान शिव की पहली पत्नी कौन थी और काली माता किसकी पत्नी थी?

भगवान शिव की पहली पत्नी कौन थी – भगवान शिव भोलेनाथ हमेशा अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं, भगवान शिव के साथ-साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी देवताओं में पूजनीय हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव की पहली पत्नी कौन थी और काली माता किसकी पत्नी थी, अगर नहीं तो इस लेख को पूरा जरूर पढ़े। तो आइये जानते है भगवान शिव की पहली पत्नी का नाम क्या था और काली माता किसकी पत्नी थी –

भगवान शिव की पहली पत्नी कौन थी (Bhagwan Shiv Ki Pahli Patni Kaun Thi)

भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती है। भगवान शिव की दूसरी पत्नी माता पार्वती है। भगवान शिव की तीसरी पत्नी देवी उमा है। और भगवान शिव की चौथी पत्नी माता काली है। ये सभी विवाह उन्होंने आदिशक्ति से ही की थीं।

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष भी थे। उनकी दो पत्नियां थीं जिनके नाम प्रसूति और वीरणी थे। माता सती का जन्म राजा दक्ष की पत्नी प्रसूति के गर्भ से हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन राजा दक्ष इस विवाह के खिलाफ थे। उन्हें भगवान शिव का रहन-सहन और पहनावा पसंद नहीं था। फिर भी, अपनी इच्छा के विरुद्ध, उन्हें अपनी पुत्री सती का विवाह शिव से करना पड़ा।

एक बार राजा दक्ष ने एक बहुत ही भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने उस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन इस यज्ञ में भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया गया था। शिवजी के मना करने पर भी माता सती बिना बुलाए ही पिता के यहां चली गईं। जब माता सती अपने पिता के घर पहुंचीं तो प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। माता सती अपने पति का इस तरह अपमान सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए। फिर उन्होंने वीरभद्र को वहाँ भेजा। वीरभद्र ने क्रोधित होकर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया।

काली माता किसकी पत्नी थी? (Kali Mata Kiski Patni Thi)

काली माता भगवान शिव की पत्नी है। मां काली को भगवान शिव की चौथी पत्नी माना जाता है। माँ काली ने भयानक राक्षसों का वध किया था। वर्षों पहले एक ऐसा दैत्य था जिसके रक्‍त की एक बूंद भी अगर धरती पर गिर जाए तो हजारों रक्तबीज उत्पन्न हो जाते थे। इस दैत्य का वध करना किसी देवता के वश में नहीं था। तब मां काली ने इस भयानक राक्षस का वध कर तीनों लोकों को बचाया था।

रक्तबीज को मारने के बाद माता का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, तब भगवान शंकर उनके चरणों में लेट गए और गलती से मां काली का पैर भगवान शिव की छाती पर पड़ गया। इसके बाद उनका गुस्सा शांत हुआ।

शिव पर पैर रखने पर मां काली को पश्चाताप हुआ और इस महापाप के कारण उन्हें प्रायश्चित के लिए वर्षों तक हिमालय में भटकना पड़ा। जब मां काली ने व्यास नदी के तट पर भगवान शिव का ध्यान किया, तो अंत में भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और इस तरह मां काली को भूलवश हुए पाप से मुक्ति मिली। देवभूमि हिमाचल के कांगड़ा परागपुर में स्थित यह स्थान अब कालीनाथ कालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

माता महाकाली का मुख्य स्थान गुजरात में है। यह मंदिर वड़ोदरा शहर से लगभग 50 किमी दूर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है। अब इसे पावागढ़ क्षेत्र कहते है। पावागढ़ मंदिर एक ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काली का दूसरा मंदिर उज्जैन में है और तीसरा मंदिर कोलकाता में है।

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