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Depawali Kab Hai 2023: 2023 में दीपावली कब है, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा सहित बहुत कुछ

Depawali Kab Hai 2023: सनातन धर्म में कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली पूजन (महालक्ष्मी पूजा) किए जाने का विधान है। दिवाली से पूर्व करवा चौथ (Karva Chauth), गौत्सव (Gautsav), धनतेरस (Dhanteras), नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi), छोटी दिपावली (Choti Deepawali) और फिर दिपावली (Depawali) का पर्व मनाया जाता है। दिपावली के एक दिन पश्चात गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja), अन्नकूट (Annakoot) महोत्सव, भाई दूज (Bhai Dooj) और विश्वकर्मा पूजन (Vishwakarma Puja) किया जाता है।

सनातन धर्म में सबसे बड़ा व महत्वपूर्व पर्व दिवाली का है। पूरी दुनिया में यह पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतरेस के एक दिन पहले गोवत्स द्वादशी त्योहार मनाते हैं। इस दिन गाेवंशों का पूजन किया जाता है। आटे का बना प्रसाद गोवंशों को बनाकर खिलाया जाता है। नंदिनी व्रत के नाम से भी गोवत्स द्वादशी को जाना जाता है।

वर्ष 2023 में, दीपावली 12 नवंबर को है। प्रत्येक वर्ष दीपावली, दिवाली या दीवाली शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो ग्रेगोरी कैलेंडर के मुताबिक अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ता है। दिवाली भारत के सबसे बड़े व सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से दीपावली ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है।

2023 में दिवाली कब है? (When Is Depawali 2023)

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दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इसलिए इस साल दीपावली का त्यौहार 12 नवंबर, दिन रविवार को मनाया जाएगा।

दीपावली तिथि 2023 (Depawali 2023 Date)

दिन – रविवार, 12 नवंबर 2023
अमावस्या तिथि प्रारंभ – 12 नवंबर 2023 को 02:44 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – 13 नवंबर 2023 को 02:56 बजे

दीपावली महानिशीथ काल मुहूर्त 2023 (Depawali 2023 Mahanishith Kaal Muhurat)

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लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त – 23:39:02 से 24:31:52 तक
अवधि – 0 घंटे 52 मिनट
महानिशीथ काल – 23:39:02 से 24:31:52 तक
सिंह काल – 24:12:32 से 26:30:11 तक

दीपावली शुभ चौघड़िया मुहूर्त 2023 (Depawali 2023 Shubh Choghadiy Muhurat)

अपराह्न मुहूर्त्त (शुभ) – 14:46:57 से 14:47:07 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल) – 17:29:11 से 22:26:23 तक
रात्रि मुहूर्त्त (लाभ) – 25:44:31 से 27:23:35 तक
उषाकाल मुहूर्त्त (शुभ) – 29:02:39 से 30:41:44 तक

भारत के कई क्षेत्रों में, 5 दिन का उत्सव दीपावली निम्नलिखित तरीके से मनाया जाता है –

धनतेरस – यह अधिकतर भारतीय व्यवसायों के लिए वित्तीय वर्ष का आरम्भ होता है। व धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा का भी दिन है।

नरक चतुर्दशी – यह दिन साफ़ – सफाई का है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और विभिन्न व्यंजन तैयार किये जाते हैं।

दिवाली – यह अमावस्या का दिन होता है। और दीपावली अवकाश का औपचारिक दिन है।

कार्तिक शुद्ध पद्यमी – राजा बलि इस दिन नरक से बाहर आये थे व धरती पर शासन किया था।

यम द्वितीय (भाई दूज) – यह दिन भाइयों व बहनों के बीच के प्रेम को दर्शाता है। यह दिन उत्तर भारत के कई स्थानों पर मनाया जाता हैं। दीपावली राजा राम के अयोध्या वापस लौटने व उनके राज्याभिषेक की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। और बंगाल में इस त्यौहार को माता काली से जोड़ा जाता है।

स्थानों के मध्य विविधताओं के बावजूद, इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है नवीनीकरण व अंधकार को दूर करना। यह खुशियों भरा त्योहार है।

दिवाली पर मां लक्ष्मी पूजा कब करें (Maa Lakshmi On Depawali In Hindi)

प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के वक्त स्थिर लग्न में पूजन करना सबसे अच्छा माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी (Lakshmi) का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये 4 राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता के अनुसार है कि अगर स्थिर लग्न के वक्त पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।

महानिशीथ काल के वक्त भी पूजन का महत्व है। पर यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए अधिक उपयुक्त होता है। मां काली की इस काल में पूजा का विधान है। इसके अतिरिक्त वे लोग भी इस वक्त पूजन कर सकते हैं। जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।

लक्ष्मी पूजा विधि (Lakshmi Puja Vidhi)

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना संध्या व रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में की जाती है। पुराणों के मुताबिक कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी खुद भूलोक पर आती हैं। और प्रत्येक घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर तरह से स्वच्छ व प्रकाशवान हो, वहां माता अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है। लक्ष्मी पूजा के सहित कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के वक्त इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  •  दीपवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें व पूरे घर में वातावरण की शुद्धि व पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव अवश्य करें। साथ ही रंगोली घर के द्वार पर व दीयों की एक शृंखला बनाएं।
  • एक चौकी पूजा स्थल पर रखें व लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या लक्ष्मी जी का चित्र दीवार पर लगाएं। चौकी के समीप जल से भरा एक कलश रखें।
  •  माता लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं। तथा दीपक जलाकर मौली, चावल, फल, जल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल इत्यादि अर्पित करें व माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।
  •  इसके साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली व कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।
  •  पूरे परिवार को एकत्रित होकर महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
  • महालक्ष्मी पूजन के पश्चात तिजोरी, बहीखाते व व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।
  • पूजन के पश्चात श्रद्धा मुताबिक ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।

क्यों मनाई जाती है दीपावली? ये हैं मान्यताएं

रोशनी का पर्व दीपावली भारतवर्ष के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। दीपावली का यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। दीपावली का भारतवर्ष में सामाजिक व धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं। 5 दिनों तक चलने वाला यह त्योहारएक महापर्व है। देश में ही नहीं बल्कि दिवाली का त्योहार विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली मनाने के पीछे कई मान्यताएं हैं। हम आज आपको दिवाली मनाने के कारण के बारे में बताएंगे। तो चलिए जानते हैं दिवाली से संबंधित 5 मान्यताओं के बारे में…

श्री रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने पर – सनातन धर्म की मान्यता अनुसार श्री राम जी दिवाली के दिन ही वनवास से अयोध्या लौटे थे। मान्यता अनुसार अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दिवाली मनाई गई थी। श्री राम को मंथरा की गलत विचारों से भ्रमित होकर भरत की माता कैकई ने उनके पिता दशरथ से वनवास भेजने के लिए वचनबद्ध कर देती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने पिता के आदेश को मानते हुए अपनी पत्नी सीता सहित भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास पर निकल गए। अपनी 14 साल का वनवास पूरा करने के पश्चात श्री राम जी दिवाली के दिन वापस अयोध्या लौटे थे। राम जी के वापस आने की खुशी में पूरे राज्य के लोगो ने रात में दीप जलाए थे व खुशियां मनाई थी। उसी समय से दिवाली मनाई जाती है।

वापस पांडवों के राज्य लौटने पर – हिन्दू महाग्रंथ महाभारत के मुताबिक शतरंज के खेल में कौरवों ने शकुनी मामा के चाल की सहायता से पांडवों का सब कुछ जीत लिया था। साथ ही पांडवों को राज्य छोड़कर 13 साल के वनवास पर भी जाना पड़ा। इसी कार्तिक अमावस्या को पांडव 13 वर्ष के वनवास से वापस लौटे थे। राज्य के लोगों ने पांडवों के वापस लौटने की खुशी में दिये जलाकर खुशियां मनाई थी।

श्री कृष्ण के द्वारा नरकासुर का वध – नरकासुर प्रागज्योतिषपुर नगर (जो इस वक्त नेपाल में है) का राजा था। अपनी शक्ति से उसने इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि समस्त देवताओं को परेशान कर दिया था। संतों आदि की 16 हजार स्त्रियों को नरकासुर ने बंदी बना लिया था। नरकासुर का अत्याचार जब बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में पहुंचे और उससे मुक्ति की गुहार लुगाई। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई। लोगों ने इसी खुशी में दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दिपक जलाए। तब से ही नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

माँ लक्ष्मी का सृष्टि में अवतार – समुंद्र मंथन के वक्त कार्तिक मास की अमावस्या (Kartik Month Amavasya) के दिन माता लक्ष्मी जी ने अवतार लिया था। धन और समृद्धी की देवी लक्ष्मी जी को माना जाता है। इसलिए लक्ष्मी जी की विशेष पूजा इस दिन होती है। दीपावली मनाने का ये भी एक विशेष कारण है।

राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक –प्राचीन भारत में राजा विक्रमादित्य एक महान सम्राट थे। मुगलों को धूल चटाने वाले विक्रमादित्य आख्रिरी हिंदू राजा थे। वे एक बहुत ही आदर्श व उदार राजा थे। उनके साहस व विद्वानों के संरक्षण की वजह से उन्हें हमेशा याद किया जाता है। उनका राज्यभिषेक इसी कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था।

दीपावली का महत्व (Depawali Importance In Hindi)

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले समस्त त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक व धार्मिक दोनों दृष्टि से बहुत ही अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहा जाता हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्हात् (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की तरफ ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इस त्यौहार को सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। इसे जैन धर्म के लोग महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में और सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।

माना जाता है कि अयोध्या के राजा राम दीपावली के दिन अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अपने परम प्रिय राजा के आगमन से अयोध्यावासियों का हृदय प्रफुल्लित हो उठा था। अयोध्यावासियों ने श्री राम के स्वागत में घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से लेकर आज तक भारतीय हर वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदैव जीत होती है व झूठ का नाश होता है।

यही दीवाली चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।

दीपावली स्वच्छता और प्रकाश का पर्व है। दीपावली की तैयारियाँ कई सप्ताह पूर्व ही आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों इत्यादि की सफाई का कार्य शुरू कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य शुरू होने लगता है। दुकानों को भी लोग साफ-सुथरा कर सजाते हैं। सुनहरी झंडियों से बाजारों में गलियों को भी सजाया जाता है। दिवाली से पहले ही घर-मोहल्ले, मार्किट सब साफ-सुथरे व सजे-धजे दिखाई देते हैं।

देव दिवाली क्यों मनाई जाती है (Dev Depawali Kyu Manai Jaati Hai)

हिंदू पंचांग के मुताबिक प्रत्येक साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली मनाई जाती है। मान्यता अनुसार देवता इस दिन काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं व दिवाली मनाते हैं। विशेष रूप से काशी में गंगा नदी के तट पर देव दिवाली मनाई जाती है। काशी नगरी में इस दिन एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है। मिट्टी के दीपक गंगा घाट पर प्रज्वलित किए जाते हैं। उस वक्त गंगा घाट का दृश्य भाव विभोर कर देने वाला होता है। तो आइये जानते हैं कि क्यों मनाई जाती है देव दिवाली –

त्रिपुरासुर राक्षस ने एक बार अपने आतंक से मनुष्यों के साथ -साथ देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था। उसके त्रास की वजह से हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था। तब सभी देव गणों ने भगवान भोलेनाथ से उस राक्षस का अंत करने के लिए निवेदन किया। जिसके पश्चात भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी देवता बहुत ही प्रसन्न हुए और शिव जी का आभार व्यक्त करने के लिए उनकी नगरी काशी में पहुंचे। काशी में देवताओं ने अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई थीं। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही वह है कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में दिवाली आज भी मनाई जाती है।

देव दिवाली का महत्व (Dev Depawali Importance In Hindi)

इस दिन गंगा में स्नान करने का बहुत महत्व माना जाता है। मान्यता अनुसार कि पृथ्वी पर आकर इस दिन देवता गंगा में स्नान करते हैं। साथ ही इस दिन दीपदान करने का भी विशेष महत्व है। देव इससे प्रसन्न होते हैं व अपनी कृपा दृष्टि करते हैं।

देव दिवाली पूजन विधि (Dev Depawali Pujan Vidhi)

  • देव दिवाली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करना चाहिए या गंगाजल घर पर ही पानी में डालकर स्नान किया जा सकता है।
  • इसके पश्चात भगवान शिव, विष्णु जी व देवताओं का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए।
  • किसी नदी या सरोवर पर संध्या समय जाकर दीपदान करना चाहिए। यदि वहां नहीं जा सकते तो दीपदान किसी मंदिर में जाकर करना चाहिए।
  • अपने घर के पूजा स्थल व घर में दीप अवश्य जलाने चाहिए।

क्यों मनाई जाती है दिवाली से पहले छोटी दिवाली

रति देव नामक एक राजा थे। अपने जीवन उन्होंने में कभी कोई पाप नहीं किया था। पर उनके समक्ष एक दिन यमदूत आ खड़े हो गए। राजा यमदूत को सामने देख अचंभित हुए और बोले कभी कोई पाप मैंने तो नहीं किया। लेकिन फिर भी क्या मुझे नरक जाना होगा? यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण (Brahman) भूखा लौट गया था, उसी पाप का यह फल है।

यह सुनकर प्रायश्चित करने के लिए राजा ने यमदूत से एक साल का समय मांगा। राजा को यमदूतों ने एक वर्ष का समय दे दिया। ऋषियों के पास राजा पहुंचे व उन्हें सारी कहानी बताकर अपनी इस दुविधा से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने राजा को बताया कि कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें व ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने वैसा ही किया और राजा पाप मुक्त हो गए। इसके बाद राजा को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति पाने हेतु कार्तिक चतुर्दशी के दिन व्रत व दीप जलाने का प्रचलन हो गया।

इन जगहों पर भारत में नहीं मनाई जाती है दिवाली

भारत में इन जगहों पर लोग न तो माता लक्ष्मी व भगवान गणेश की पूजा करते हैं और न ही पटाखे जलाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोग यहां पर दीये भी नहीं जलाते हैं। दिवाली का त्योहर भारत के दक्षिणी राज्य केरल में नहीं मनाया जाता है। दिवाली के अलावा सभी त्योहार केरल के लोग धूमधाम से मनाते हैं। पर दिवाली पर कुछ नहीं करते हैं। केरल में दिवाली केवल कोच्चि में ही मनाई जाती है।

केरल में दिवाली न मनाने के कई कारण हैं। राक्षस महाबली केरल में राज करता था और यहां पर राक्षस महाबली की ही पूजा की जाती है। इसलिए यहां पर राक्षस की हार पर लोग पूजा नहीं करते हैं।

हम सभी यह जानते हैं कि रावण पर भगवान राम ने विजय पाई थी व अपना वनवास समाप्त कर अयोध्या वापस लौटे थे। इसकी कारण से भारत में कार्तिक मास की पूर्णिमा को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।

दिवाली केरल में न मनाने का दूसरा कारण यह है कि हिन्दू धर्म के लोग वहां पर कम हैं। इस कारण से राज्य में दीपावली पर धूम-धाम नहीं होती। केरल में इस वक्त बारिश होती है, जिसके कारण पटाखे और दीये भी नहीं जलते हैं।

केरल (Kerala) के साथ ही तमिलनाडु (Tamil Nadu) में भी एक जगह पर दीवाली नहीं मनाई जाती है। वहां पर लोग नरक चतुर्दर्शी मनाते हुए दिखाई दते हैं।

दीपावली पर क्या करें

  • दीपावली मतलब कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के पश्चात स्नान करना चाहिए। मान्यता अनुसार ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।
  •  दिवाली के दिन वृद्धजन व बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को माँ महालक्ष्मी पूजन के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें।
  •  पूर्वजों का दीपावली पर पूजन करें व धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के वक्त हाथ में उल्का धारण कर पितरों को राह दिखाएं। यहां उल्का से मतलब है कि दीपक जलाकर या अन्य किसी माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
  • दिवाली से पूर्व मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन व घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहते है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर हो जाती है।

करें ये मंगल कार्य

आम के पत्तों का तोरण – दिवाली के दिन लोग देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए अपने घरों को रंगवाते है। और अलग-अलग तरह से सजाते हैं। लेकिन इन सबके साथ अपने घर के दरवाजे पर तोरण जरूर लगाना चाहिए। घर के मुख्य द्वार पर दिवाली के दिन आम, पीपल के पत्ते और गेंदे को फूलों की माला से तोरण बनाकर लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी इससे प्रसन्न होती हैं।

फूलों व रंगों से बनाएं रंगोली – दिवाली के दिन घर के आंगन और दरवाजे पर रंगोली बनाने की प्रथा काफी समय से चली आ रही है। लोग अपने घरों में अन्य त्योहारों पर भी रंगोली बनाते हैं। वक्त की कमी हो या आधुनिकता, आज के समय में लोग रेडीमेड स्टिकर्स से रंगोली लगाने लगे हैं। लेकिन देवी लक्ष्मी के स्वागत में फूलों और रंगों से रंगोली बनानी चाहिए और दीप जलाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी आपके पास आती हैं।

कलश स्थापना अवश्य करें –सनातन धर्म में कलश को पूजा और शुभ कार्यों में जरूर रखा जाता है। दीपावली के दिन भी एक कलश में जल भर आम के पत्ते उसमें डालकर कलश के मुख पर नारियल भी रखना चाहिए। रोली या कुमकुम से स्वस्तिक बनाकर कलश पर मौली बांधनी चाहिए। इस प्रकार कलश को तैयार कर पूजा स्थल पर रखना चाहिए।

इन जगहों पर जलाएं दीये

चौखट पर – अगर आप दिवाली की रात को दीया जलाते हैं, तो आपको घर के मुख्य दरवाजे के चौखट के दोनों तरफ दीये जलाने है। ध्यान रहे दीपक तेल का हो। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की कमी नहीं होती है।

पीपल के पेड़ के नीचे – दिवाली के दिन आप पीपल के पेड़ के नीचे भी दीया जला सकते हैं। आपको बस इतना करना है कि दीवाली की रात एक तेल का दीपक जलाकर एक पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन की कमी नहीं होती है।

आंगन में – दिवाली की रात घर के आंगन में दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इसमें इतना तेल डालें कि यह रात भर जलता रहे। आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह दीया रात के समय बुझने ना पाए। ऐसा करने से पैसों की कमी नहीं होती है।

मंदिर में – जिस तरह आप दिवाली के दिन अपने घर के मंदिर में दीया जलाते हैं। इसी तरह आप भी अपने घर के पास के मंदिर में तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से धन की कमी को दूर करने में भी मदद मिलती है।

न करे ये गलतियां

  • दीपावली के दिन शाम को कभी नहीं सोना चाहिए। यह गरीबी की ओर ले जाता है क्योंकि देवी लक्ष्मी शाम को घर आती हैं और जब वह घर के किसी भी सदस्य को बिस्तर पर सोई हुई देखती हैं तो वापस लौट आती हैं।
  • दीपावली के शुभ दिन पर आपको अपने घर के बड़ों का सम्मान करना चाहिए। भूलकर भी उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दीपावली पर मां लक्ष्मी की कृपा नहीं मिलती है।
  • दिवाली के दिन अक्सर लोग शराब और नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। इस दिन भूलकर भी ऐसा न करें। इससे पूरे घर में दरिद्रता आती है।
  • दीपावली के दिन भूलकर भी घर में किसी सदस्य से झगड़ा नहीं करना चाहिए। ऐसा जिस घर में होता है उस घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है।
  • लक्ष्मी जी सबसे पहले उसी घर में आती हैं जहां साफ-सफाई रखी जाती है। दिवाली के दिन अपने घर को दीवारों से लेकर फर्श तक साफ रखें और घर के बाहर रंगोली बनाएं। साथ ही घर को फूलों की माला से सजाएं।
  • दिवाली पर आपको अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। इस विशेष अवसर पर क्रोधित होकर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं।

भूलकर भी लक्ष्मी पूजा के दौरान न अर्पित करें ये चीजें

तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। हरिवल्लभा भी तुलसी को कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक विष्णु जी के विग्रह स्वरूप शलिग्राम से तुलसी का विवाह हुआ था। जिस वजह से एक तरह से रिश्ते में वह माता लक्ष्मी की सौतन बन गई, इसलिए माना जाता है कि उन्हें भोग लगाते समय या मां लक्ष्मी की पूजा में तुलसी या फिर तुलसी मंजरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी आपसे रुष्ट हो सकती हैं। जिस वजह से आपको जीवन में धन संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है। आप भी दीपवाली पर ख्याल रखें कि किसी भी तरह से से मां लक्ष्मी को तुलसी की मंजरी अर्पित न करें।

माता लक्ष्मी को सुख-सुहाग व सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। मां लक्ष्मी को सदैव गुलाबी व लाल आदि शुभ रंगों की चीजें अर्पित करनी चाहिए। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, पर उनकी पूजा में भूलकर भी कभी भी सफेद रंग व सफेद वस्त्र नहीं चढ़ाने चाहिए। यह शुभ नहीं माना गया है।

माता लक्ष्मी की पूजा के साथ – साथ भगवान गजानंद की वंदना अवश्य करनी चाहिए। गणेश वंदना के पश्चात लक्ष्मी नारायण की पूजा आरम्भ करनी चाहिए। तभी लक्ष्मी जी की पूजा पूरी होती है। गणेश जी की वंदना के बिना लक्ष्मी पूजा कभी भी सफल नहीं होती है। माता लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त करने के लिए गणेश पूजन जरूर करें।

निष्कर्ष

हम उम्म्मीद करते हैं कि दिवाली (Depawali) का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो। आप पर व आपके परिवार पर माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहे और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आए।

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