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गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप, क्या मांस खाना पाप है?

गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप – हर धर्म में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। परंतु जो हिंसा अत्याचारी से अपनी रक्षा के लिए नहीं की जाती वह सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है और ऐसी हिंसा से ही मांस का भोजन प्राप्त होता है। ऐसे में हिंदुओं के लिए मांस खाना सबसे बड़ा पाप माना जाता है। महाभारत में मांसाहार की कड़ी निंदा की गई है।

लेकिन आज के इस लेख में हम आपको क्या मांस खाना पाप है, गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप के बारे में जानकारी देने वाले है। तो आइये जानते है

क्या मांस खाना पाप है?

हाँ, मांस खाना पाप है। वेदों और पुराणों में मांस खाना घोर पाप होता है। इसलिए किसी का भी मांस नहीं खाना चाहिए।

गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप (Garuda Purana Ke Anusaar Mans Khana Punya Hai Ya Paap)

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हिंदू धर्म में मांस खाना पाप माना गया है। किसी भी वेद या पुराण में यह नहीं लिखा है कि मांस खाना सही है, या मांस खाना चाहिए। हमारे वेदों और पुराणों में किसी को मारना और उसका मांस खाना घोर पाप है।

गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु पक्षीराज गरुड़ को एक कथा सुनाते हुए कहते हैं कि – जो व्यक्ति मांस खाता है या शराब का सेवन करता है। उसकी भक्ति या पूजा को कोई भी देवता स्वीकार नहीं करता है, न ही ऐसे व्यक्ति की कोई देवता मदद करते हैं, इसलिए मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए ताकि उसे अपने जीवनकाल में और मृत्यु के बाद भी ईश्वर की शरण मिल सके।

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भगवान विष्णु कहते हैं कि जो व्यक्ति स्वाद के लिए दूसरे जानवरों को मारता है, उसे मरने के बाद कई जन्मों तक उसी जानवर की योनि में भटकना पड़ता है और वह भी उसी तरह मारा जाता है, जैसे उसने भोजन के लिए किसी जानवर को मारा था।

इसलिए अगर आप भगवान की पूजा-अर्चना या भक्ति में विश्वास रखते हैं तो मांसाहार का सेवन करना बंद कर दीजिए, वैसे भी मांसाहार को वैज्ञानिक दृष्टि से उचित नहीं माना जाता है। इससे इंसान कई बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाता है।

मांस खाने के बारे में महाभारत क्या कहती है?

जो व्यक्ति दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे अधिक घृणित और क्रूर व्यक्ति कोई नहीं है।

जो मांस का त्याग कर देता है, उसका सभी प्राणियों द्वारा आदर किया जाता है, सभी प्राणियों द्वारा उस पर विश्वास किया जाता है और ऋषि-मुनियों द्वारा उसका सदैव आदर किया जाता है।

जो व्यक्ति शराब और मांस का त्याग करता है वह दान, यज्ञ और तप करता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को इन तीनों चीजों का लाभ मिलता है।

ऋषि मुनि अहिंसारूप परम धर्म की प्रशंसा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य को अपनी जान प्यारी होती है उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपनी जान प्यारी होती है।

मांस न घास से पैदा होता है, न लकड़ी से, न पत्थर से। किसी जानवर को मारकर ही मांस प्राप्त किया जाता है। इसलिये मांस खाने में दोष है।

FAQs

क्या वेदों में मांस खाना लिखा है?
नहीं वेदों में मांस खाना कहीं नहीं लिखा है।

कौन सा धर्म मांस खाने की अनुमति देता है?
इस्लाम धर्म मांस खाने की अनुमति देता है।

क्या श्री कृष्ण मांसाहारी थे?
नहीं, श्री कृष्ण मांसाहारी नहीं थे।

क्या हिंदू धर्म में भैंस के मांस की अनुमति है?
नहीं, हिंदू धर्म में किस का भी मांस खाने की अनुमति नहीं है।

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस लेख में हमने आपको गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप, क्या मांस खाना पाप है के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप अच्छा लगा है, तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

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