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Maharana Pratap Jayanti 2024: महाराणा प्रताप जयंती कब है 2024, जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

Maharana Pratap Jayanti Kab Hai 2024:  भारत के वीरों की बात करें तो महाराणा प्रताप का नाम जरूर लिया जाता है। महाराणा प्रताप का जन्म सोलहवीं शताब्दी में वीरों की भूमि राजस्थान में हुआ था। महाराणा प्रताप ने अकबर से युद्ध के मैदान में कई बार युद्ध किया और अपने परिवार के साथ जंगलों में प्रतिकूल परिस्थितियों को भी देखा, लेकिन हार नहीं मानी और अकबर के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। आज भी महाराणा प्रताप के शौर्य और पराक्रम के किस्से सुनाए जाते हैं और उनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। आइए जानते हैं महाराणा प्रताप की जयंती कब है और उनके जीवन से जुड़ी खास बातें –

महाराणा प्रताप की जयंती कब है 2024 (Maharana Pratap Ki Jayanti Kab Hai 2024 )

अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ में हुआ था, लेकिन सन 1540 ई. में इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार इस बार महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई 2024, गुरूवार को मनाई जाएगी।

महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी खास बातें

  • महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था, उन्होंने युद्ध कौशल ​​अपनी मां से सीखा था।
  • महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए भीषण युद्ध को आज भी इतिहास में पढ़ा जाता है। यह युद्ध 1576 ई. में मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप द्वारा लड़ा गया था।
  • अकबर के पास एक विशाल सेना और हथियार थे, लेकिन महाराणा प्रताप के पास उनकी शौर्यऔर वीरता थी। उनके पास कुछ लेकिन बहादुर योद्धा थे। जिन्होंने हर हाल में महाराणा प्रताप का साथ दिया।
  • हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के पास केवल 20 हजार सैनिक थे और अकबर के पास 85 हजार सैनिकों की एक बड़ी सेना थी। फिर भी, महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने पूरी वीरता के साथ अकबर के खिलाफ लड़ाई लड़ी। न तो अकबर इस युद्ध को जीत सका और न ही महाराणा प्रताप की हार हुई। अकबर महाराणा प्रताप को कभी भी अपने वश में नहीं कर सका।
  • महाराणा प्रताप का पसंदीदा घोड़ा चेतक था, आज भी उसकी कविताएं पढ़ी जाती हैं। महाराणा प्रताप की तरह उनका घोड़ा चेतक भी बहुत बहादुर था। इतिहास के अनुसार महाराणा प्रताप को पीठ पर बिठाकर चेतक युद्ध के मैदान में कई फीट चौड़े नाले से कूद गया था।
  • युद्ध में घायल होने के कारण चेतक की मृत्यु हो गई। हल्दीघाटी में आज भी चेतक की समाधि बनी हुई है, जो उसकी बहादुरी का बखान करता है।
  • जब महाराणा प्रताप अपने वफादारों और परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे और अकबर के सैनिक उनके पीछे पड़े। तब खाना पकाने के बाद भी उन्हें खाने के लिए भोजन नहीं मिला पाता था । एक बार महाराणा प्रताप की पत्नी और पुत्रवधू घास के बीज की रोटी बनाकर देती हैं। इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने सिर नहीं झुकाया। अकबर स्वयं महाराणा प्रताप की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाया था।
  • इतिहासकारों के अनुसार अकबर ने महाराणा प्रताप से बातचीत करने के लिए कई दूत भेजे थे, लेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। क्योंकि राजपूत योद्धा कभी किसी के सामने घुटने नहीं टेकते।

महाराणा प्रताप के बारे में (About Maharana Pratap In Hindi)

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ किले में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह और माता जयवंत कंवर थीं। महाराणा प्रताप को बचपन में ‘कीका’ कहा जाता था। मेवाड़ का राजपूताना राज्यों में एक विशेष स्थान है, जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदय सिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है।

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उस समय, दिल्ली पर मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजाओं और सम्राटों को अपने अधीन करके और मुगल साम्राज्य की स्थापना करके पूरे भारत में इस्लामी परचम फहराना चाहता था। 30 वर्षों के निरंतर प्रयासों के बावजूद, महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया।

महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि अकबर के लिए जीवन भर उसके मुंह से केवल तुर्क ही निकलेगा और वह अकबर को कभी भी अपना सम्राट नहीं मानेगा। अकबर ने शांति दूतों को महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 4 बार अपना संदेश भेजा था। लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

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इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ बहुत शक्तिशाली थे। उनकी लंबाई करीब 7 फीट 5 इंच थी और वह अपने साथ 80 किलो का भाला और दो तलवारें रखते थे। महाराणा प्रताप जो कवच पहनते थे वह भी 72 किलो का था। उनके अस्त्रों और शस्त्रों का कुल वजन करीब 208 किलो हुआ करता था।

 महाराणा की वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण 8 जून 1576 को हल्दीघाटी की लड़ाई में देखा गया था। जहां महाराणा प्रताप की लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों की सेना का सामना आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना से हुआ था। 3 घंटे से अधिक समय तक चले इस युद्ध (हल्दीघाटी की लड़ाई) में महाराणा प्रताप घायल हो गए थे। कुछ साथियों के साथ, वह जाकर पहाड़ियों में छिप गए ताकि वह अपनी सेना को इकट्ठा कर सके और उसे फिर से हमला करने के लिए तैयार कर सके। लेकिन तब तक मेवाड़ की हताहतों की संख्या बढ़कर लगभग 1,600 हो गई थी, जबकि अकबर की मुगल सेना ने 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500-7800 सैनिकों को खो दिया था।

कई इतिहासकारों का मानना ​​है कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुई थी। ऐसा माना जाता था कि अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठी भर राजपूत ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और राजपूतों ने मुगल सेना में ऐसी हलचल मचा दी थी कि मुगल सेना में कोहराम मच गया था। इस युद्ध में जब महाराणा प्रताप की सेना घायल हो गई, तो उन्हें जंगल में छिपना पड़ा और फिर से अपनी ताकत जमा करने की कोशिश की। महाराणा ने गुलामी की बजाय जंगलों में भूखे रहना पसंद किया, लेकिन अकबर की बड़ी ताकत के आगे कभी नहीं झुके।

हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप जंगलों में रहने लगे। लेकिन अकबर की सेना पर छापामार युद्ध छेड़ते रहे। यह रणनीति पूरी तरह सफल रही और अकबर के सैनिकों की लाख कोशिशों के बाद भी वे कभी उनके हाथ में नहीं आए। कहा जाता है कि इस दौरान राणा को घास की रोटी पर भी गुजारा करना पड़ा। लेकिन 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। दिवेर की लड़ाई में महाराणा प्रताप के खोए हुए राज्य वापस मिल गए, जिसके बाद राणा प्रताप और मुगलों के बीच एक लंबा संघर्ष युद्ध में बदल गया। जिसके कारण इतिहासकारों ने इसे ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा।

इस बीच, अकबर बिहार, बंगाल और गुजरात में विद्रोह को दबाने में लगा हुआ था, जिससे मेवाड़ पर मुगलों का दबाव कम हो गया। दिवेर की लड़ाई के बाद, महाराणा प्रताप ने उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा कर लिया और राणा का मेवाड़ के उसी हिस्से पर कब्जा हो गया जब उनके सिंहासन पर विराजने के वक्त था। इसके बाद महाराणा ने मेवाड़ के उत्थान के लिए काम किये लेकिन 11 साल बाद 19 जनवरी 1597 को अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई।

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर प्रताप की अटूट देशभक्ति को देखकर अकबर की आंखों में आंसू आ गए। मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, ‘इस दुनिया में सब कुछ खत्म होने जा रहा है। धन-दौलत खत्म हो जाएगी लेकिन एक महान व्यक्ति के गुण हमेशा जीवित रहेंगे। प्रताप ने अपनी दौलत छोड़ दी लेकिन कभी सिर नहीं झुकाया।

कुछ अनमोल विचार  

महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे। जिन्होंने अपने युद्ध कौशल और रणनीति के बल पर मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ीं। महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं। महाराणा प्रताप ने अपने जीवनकाल में कई प्रेरक संदेश दिए थे। महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं उनके कुछ अनमोल विचार –

  • जो व्यक्ति बुरा समय आने पर डर जाता है, उसे न तो सफलता मिलती है और न ही इतिहास में स्थान मिलता है।
  • जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि और मां के बीच का अंतर समझता है, वह कमजोर और मूर्ख है।
  • कर्म करने वालों को दुनिया हमेशा याद करती है इसलिए कर्म करते रहे ।
  • यदि आप युद्ध में हार जाते हैं, तो हार आपसे धन और राज पाठ छीन सकती है। लेकिन आपका गौरव नहीं।
  • अच्छे इरादों वाला व्यक्ति कभी हार नहीं मान सकता।
  • सुखी जीवन जीना से अच्छा, राष्ट्र के लिए कष्ट सहना और राष्ट्र के लिए जीना।
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