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महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी, महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई थी?

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी – महाराणा प्रताप का नाम भारत के वीर योद्धाओं में शामिल है। महाराणा प्रताप की वीरता की बहुत सी कहानियां हैं। वीर योद्धा महाराणा प्रताप की वीरता की तुलना किसी की भी नहीं की जा सकती। उन्होंने न सिर्फ राजस्थान बल्कि भारत के गौरव को भी विशेष स्थान दिया था। मेवाड़ के राजा महाराणा ने अपने जीवन में कभी किसी की गुलामी स्वीकार नहीं की। वह अकबर की शक्तिशाली सेना के सामने डटकर खड़े रहे और कभी दुश्मनों के हाथ नहीं आये।

आज के इस लेख में आप जानेंगे की महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी, महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई थी –

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी (Maharana Pratap Ki Mrityu Kab Hui Thi)

19 जनवरी को महाराणा प्रताप की पुण्य तिथि मनाई जाती है। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ के कुम्भलगढ़ में हुआ था। जबकि उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1597 को हुई थी।

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई थी (Maharana Pratap Ki Mrityu Kaise Hui Thi)

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जब राणा ने मेवाड़ के उसी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया जो उनके सिंहासन पर बैठने के समय था। तब महाराणा ने मेवाड़ के उत्थान के लिए काम किया, लेकिन 11 साल बाद उनकी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई।

कहा जाता है कि शिकार करते समय धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने से उनकी मृत्यु हुई। धनुष उनकी आंत पर ऐसा लगा कि उनके पेट में गहरा घाव हो गया, जिसका इलाज नहीं हो सका।

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कहा जाता है कि अपने आखिरी पलों में जब वह घायल हुए थे तो वह काफी चिंतित थे। अपनी मृत्यु के समय भी उन्हें अपने राज्य की चिंता थी। उन्हें लगा कि उनकी प्रजा मुगलों के सामने झुक जायेगी और राज्य बिखर जायेगा। उन्हें लगा कि उनके जाने के बाद उनका राज्य बिखर जाएगा और उनके बेटे मुगलों से समझौता करने के लिए मजबूर हो जायेंगे। उनकी मृत्यु के समय, जब उनके सामंतों ने उन्हें अपने कुल की रक्षा करने का वादा किया, तो वे अपने प्राण त्याग सके।

हल्दी घाटी का युद्ध (Haldi Ghati Ka Yudh In Hindi)

उनकी वीरता की पुष्टि उनके युद्ध की घटनाओं से होती है, जिनमें से सबसे प्रमुख 8 जून 1576 ई. को हल्दी घाटी का युद्ध था, जिसमें आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में महाराणा प्रताप की लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों की सेना ने लगभग 5,000 -10,000 लोगों की सेना ने को हराया था।

तीन घंटे से अधिक समय तक चले इस युद्ध में महाराणा प्रताप प्रताप घायल हो गए लेकिन फिर भी मुगलों की हार हुई। वह कुछ साथियों के साथ पहाड़ियों में जाकर छिप गए ताकि वह अपनी सेना को इकट्ठा कर सके और दोबारा आक्रमण के लिए तैयार कर सके। लेकिन तब तक मेवाड़ के मारे गए सैनिकों की संख्या 1,600 तक पहुंच गई थी, जबकि मुगल सेना ने 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500-7800 सैनिकों को खो दिया था।

इस युद्ध में जब महाराणा प्रताप की सेना हार गई तो उन्हें जंगल में छिपना पड़ा और फिर से अपनी ताकत इकट्ठा करने की कोशिश करने लगे। महाराणा ने गुलामी के बजाय जंगलों में रहना और भूखा रहना पसंद किया, लेकिन अकबर की महान शक्ति के सामने कभी नहीं झुके। इसके बाद अपनी खोई हुई ताकत को इकट्ठा करते हुए प्रताप ने छापामाररणनीति का सहारा लिया। यह रणनीति पूरी तरह से सफल रही और अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद वे कभी भी अकबर के सैनिकों के हाथ नहीं आये।

दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने खोए हुए राज्यों को पुनः प्राप्त करना शुरू कर दिया। इस युद्ध के बाद राणा प्रताप और मुगलों के बीच एक लंबा संघर्ष युद्ध में बदल गया और राणा ने एक-एक करके उनके सभी क्षेत्रों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया और दिवार की लड़ाई के बाद उन्होंने मुगलों पर भी नियंत्रण हासिल करना शुरू कर दिया और उन्होंने उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

FAQs

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब और कैसे हुई थी हिंदी में?
महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण मृत्यु हुई थी।

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस लेख में हमने आपको महाराणा प्रताप की मृत्यु और कैसे हुई थी (Maharana Pratap Ki Mrityu Kab Aur Kaise Hui Thi) के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई और कैसे हुई थी (Maharana Pratap Ki Mrityu Kab Hui Aur Kaise Hui Thi) अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

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