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Rakshabandhan 2023: कब है रक्षाबंधन, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, इतिहास और कथा

Rakshabandhan 2023 | Raksha Bandhan 2023 | Rakshabandhan Kab Hai 2023: रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है। इसमें बहनें अपने भाइयों को रक्षा बंधन बांधती हैं और भाई सुरक्षा के लिए प्रतिज्ञा बद्ध होता है। रक्षा बंधन पूरे देश में बहुत ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। बहने भाइयों की कलाई पर रक्षा बंधन बांधकर उनकी लंबी उम्र, सफलता और समृद्धि की कामना करती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार रक्षा बंधन का पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2022 में यह तिथि 11 अगस्त, दिन गुरुवार को पड़ रही है।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। बहन भाई के इस पावन पर्व पर बहन अपने भाई को प्रेम के डोर के रूप में राखी बांधती है। यह पर्व प्रेम के अटूट बंधन को दर्शाता है। रक्षाबंधन का मतलब रक्षा के लिए बांधा गया बंधन है। इसलिए बहन अपनी हर प्रकार से रक्षा के लिए भाई की उसकी कलाई पर राखी बांधती है। राखी बांधने के बाद भाई अपनी बहन को प्यार से पैसे या उपहार देता है और अपनी बहन की रक्षा करने का वादा करता है। रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के इतिहास की बात करें तो यह त्योहार सदियों पुराना है और इस त्योहार की शुरुआत के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

रक्षा बंधन 2023 तिथि

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हिन्दू पंचांग के अनुसार रक्षा बंधन का पर्व प्रतिवर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वर्ष 2022 में रक्षा बंधन का पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा। यह दिन गुरुवार है।

रक्षा बंधन 2023 शुभ मुहूर्त

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रक्षा बंधन 2023 दिनांक | राखी 2023 दिनांक – 11 अगस्त 2022

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 11 अगस्त 2023 – 10:38 AM से 17:17 PM

रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त – 11 अगस्त, गुरूवार सुबह 08 :51 बजे से शाम 09 :17 बजे तक।

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) के लिए 12 बजे बाद का समय – 05 :17 बजे से 06 :18 बजे तक।

पूर्णिमा तिथि आरम्भ – 11 अगस्त 2022 – 10:38 AM से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 12 अगस्त 2022 – 07:05 AM तक

इसलिए भद्राकाल में नहीं बांधते राखी

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रकाल में राखी बांधना अशुभ होता है। ज्योतिष में भद्रा और राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है क्योंकि इस समय किए गए कार्य का फल अशुभ होता है। पौराणिक मान्यता है कि भद्रकाल में लंकापति रावण ने राखी बांधी थी। इसके एक वर्ष के भीतर रावण का विनाश हुआ और वह मारा गया। इसलिए बहनें भद्रकाल को छोड़कर अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं।

ऐसा माना जाता है कि भद्रा सूर्य पुत्र शनि महाराज की बहन हैं। एक समय भगवान ब्रह्मा ने भद्रा को श्राप दिया था कि जो कोई भी भद्रा में शुभ कार्य करेगा। उसे अशुभ फल मिलेगा। इस कारण भी राखी भद्रा काल में नहीं बांधी जाती है और न ही राहु में।

रक्षाबंधन का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि राक्षस राजा बलि के अनुरोध को स्वीकार करने के बाद, भगवान नारायण पाताल लोक में रहने चले गए। भगवान विष्णु के जाने के बाद मां लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। फिर उन्होंने नारायण को वापस लाने के लिए एक गरीब महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के सामने पहुंची और उन्हे राखी बांधी। राखी बांधने के बाद राजा बलि ने कहा, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है, इस पर गरीब महिला के रूप से मां लक्ष्मी अपने वास्तविक स्वरूप में आ गईं और राजा बलि से कहा, आपके पास नारायण हैं, मैं उन्हें ही लेने आयी हूं। इसके बाद भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ जाने लगे। जाते समय, भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया और कहा कि वह हर साल चार महीने पाताल लोक में आकर निवास करेंगे। इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जिस दिन से मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी थी, उसी दिन से रक्षा बंधन शुरू हो गया था।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) पर बहनें क्यों बांधती हैं भाई की कलाई पर राखी? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

देवी शची और इंद्र की कथा

रक्षाबंधन (Rakshabandhan)  की शुरुआत कब और कैसे हुई इसके बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। यहां तक ​​कि महाभारत में भी रक्षासूत्र का उल्लेख किया गया है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि पहला रक्षासूत्र इंद्र को उनकी पत्नी शची ने बांधा था। ऐसा कहा जाता है कि जब इंद्र वृत्तसुर से युद्ध करने जा रहे थे, तो उनकी चिंता करते हुए, देवी शची ने उनके हाथ पर मौली या कलावा बांध दिया और उनकी रक्षा की कामना की। इसके बाद से रक्षाबंधन की शुरुआत मानी जाती है।

भगवान विष्णु और राजा बालि की कथा

वहीं दूसरी कथा भगवान नारायण और दैत्य राजा बलि की है। कहा जाता है कि इसके बाद भी रक्षासूत्र (Rakshasutra) का महत्व बढ़ गया था। दरअसल, भगवान विष्णु वामन का रूप धारण कर राजा बलि से उसका राज्य ठगने जाते हैं और तीन पग में राजा बलि का सारा राज्य नाप लेते है। इसके बाद राजा बलि को पाताल लोक में रहने की सलाह दी। राजा बलि नारायण जी की बात मान लेते हैं और पाताल लोक चले जाते हैं। लेकिन जाते – जाते भगवान विष्णु राजा बलि से वरदान मांगने के लिए कहते है। ऐसे में राजा बलि उनसे अपने साथ पाताल लोक में निवास करने के लिए कहते है। ऐसे में विष्णु जी अपने वचन को पूरा करते हैं और बलि के साथ पाताल लोक में निवास करने के लिए चले जाते है।

भगवान विष्णु के जाने के बाद मां लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। फिर उन्होंने नारायण को वापस लाने के लिए एक गरीब महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के सामने पहुंची और उन्हे राखी बांधी। राखी बांधने के बाद राजा बलि ने कहा, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है, इस पर गरीब महिला के रूप से मां लक्ष्मी अपने वास्तविक स्वरूप में आ गईं और राजा बलि से कहा, आपके पास नारायण हैं, मैं उन्हें ही लेने आयी हूं। इसके बाद भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ जाने लगे। जाते समय, भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया और कहा कि वह हर साल चार महीने पाताल लोक में आकर निवास करेंगे। इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जिस दिन से मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी थी, उसी दिन से रक्षा बंधन शुरू हो गया था।

भगवान श्री कृष्ण व द्रौपदी की कथा

महाभारत में रक्षाबंधन (Rakshabandhan) से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी बताई गई है। महाभारत में जब श्रीकृष्ण शिशुपाल का वध करते हैं। तो उनकी अंगुली में चोट लग गई। उस दौरान द्रौपदी झट से अपनी साड़ी का एक सिरा फाड़ देती है और उसे कृष्ण की चोट पर बांध देती है। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया। इसके बाद जब हस्तिनापुर की सभा में दुशासन द्रौपदी का चीर हरण रहा था, तब श्रीकृष्ण ने उनका चीर बढ़ाकर द्रोपदी के मान की रक्षा की थी।

पौराणिक कथा बताती है कि कैसे भाई-बहन के रिश्ते की नींव प्यार और त्याग पर टिकी होती है। बहन की रक्षा का सम्मान करना भाइयों का कर्तव्य है। रक्षासूत्र का वास्तविक अर्थ है उन्हें हर मुसीबत से बचाना और जरूरत के समय उनके काम आना।

हर साल राखी पर बहनों से मिलने हिमालय जाते हैं शनि देव

शनि देव की यमुना, भद्रा नाम की दो बहनें हैं, जबकि यमराज बड़े भाई हैं। शनि देव हर साल अपनी बहन से मिलने जाते हैं। वहीं यमराज के अपनी बहन के घर जाने के साथ ही यमदूज का पर्व शुरू हो गया था। अपने भाई के स्वभाव की तरह उसकी बहन भाद्र भी बहुत क्रोधी है। कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ तो वह संसार को खाने चली गईं और तमाम अनुष्ठानों में विघ्न डालना शुरू कर दिया। मंगल की यात्रा में अवरोध बनने लगीं।

भद्रा के पिता यानी सूर्य देव के लिए उनका विवाह करना भी एक चुनौती बन गई। कोई उससे शादी नहीं करना चाहता था। जब सूर्य देव ने उनके लिए स्वयंवर का आयोजन किया, तो उन्होंने उसमें विघ्न डाल दिया। उनकी क्रोध की दृष्टि से संसार को बचाने के लिए ब्रह्मा ने उनको पंचांग में स्थान दिया। ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि लोग तुम्हारे समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं करेंगे। यदि अगर ऐसा करते हैं, तो आप तुम काम में विघ्न डालने के लिए स्वतंत्र हो । भद्रा ने ब्रह्मा जी की बात मान ली और समय के अंश में विराज गई। तब से लेकर आज तक भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य वर्जित है।

हर साल अपनी बहन से मिलने जाते हैं शनि देव

शनि देव की दूसरी बहन यमुना बहुत ही शांत और पवित्र हैं। हर साल शनि देव यमुना से मिलने यमुनोत्री जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर शनि देव अपनी बहन से मिलकर उत्तरकाशी के खरसाली लौटते हैं। दीपावली के दो दिन बाद यानी भाई दूज यमुना जी खरसाली भाई शनि देव के पास जाती हैं। जहां वह छह महीने तक रहती हैं। यमुना को आज भी बड़ी धूमधाम से खरसाली ले जाया जाता है।

बहन के घर पहुंचे थे यम

शनि देव के भाई यम भी अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे। एक बार बहन के बुलाने पर यमराज भोजन ग्रहण करने गए थे। वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी। उस दिन यमराज और यमुना दोनों बहुत प्रसन्न हुए। बहन ने भाई का खुलकर स्वागत किया। यमराज अपनी बहन का स्नेह देखकर प्रसन्न हुए और उनसे उपहार मांगने को कहा। यमुना ने उनसे हर साल आने के लिए कहा। तब से हर साल इसी तिथि को भाई दूज या यम दूज का पर्व मनाया जाता है।

इन 5 चीजों के बिना अधूरा रहेगा रक्षाबंधन

राखी: रक्षाबंधन के त्योहार में सबसे खास चीज राखी होती है. इसलिए बहनों को पूजा की थाली में राखी जरूर रखनी चाहिए। हो सके तो राखी का रंग राशि के अनुसार हो तो बहुत अच्छा रहेगा।

रोली या हल्दी पाउडर: राखी बांधते समय बहनें सबसे पहले अपने भाइयों को तिलक लगाती हैं। ऐसे में तिलक लगाने के लिए रोली का होना बहुत जरूरी है। रोली की जगह हल्दी पाउडर से भी तिलक लगाया जा सकता है। रक्षाबंधन के दिन रोली को पूजा की थाली में रखें।

अक्षत {साबुत चावल}: तिलक लगाने के बाद माथे पर चावल भी लगाया जाता है। इसे अक्षत भी कहते हैं। ध्यान रहे कि चावल टूटे हुए न हो। रक्षाबंधन के दिन चावल को पूजा की थाली में रखें।

आरती के लिए दीपक: रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दिन बहनें अपने भाइयों की आरती उतारती हैं। आरती करने के लिए पूजा की थाली में दीपक का होना बहुत जरूरी है। इसलिए राखी इसके बिना अधूरी रहेगी।

मिठाई: रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के पावन पर्व पर बहनें अपने भाइयों को मिठाई खिलाती हैं। इसके लिए पूजा की थाली में मिठाई का होना जरूरी है।

राखी बांधने से पूर्व करें ये काम

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दिन राखी बांधने से पहले बहनों को भगवान को राखी अर्पित करनी चाहिए। हिंदू शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले देवताओं को राखी बांधकर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। फिर भाइयों को राखी बांधें। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और बहनों को मनचाहा वरदान देते हैं। भाइयों का घर धन-दौलत से भर देते हैं

सबसे पहले भगवान गणेश को राखी बांधनी चाहिए। उसके बाद किसी भी देवता को जैसे – भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री राम, भगवान हनुमान और अपने इष्ट देव जैसे किसी भी देवता को राखी अर्पित करें। उसके बाद ही भाइयों को राखी बांधें।

भूल कर भी न करें ये काम

रक्षा बंधन पर कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस दिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। रक्षा बंधन पर साफ-सफाई के नियमों का कठोरता से पालन करना चाहिए। इसके साथ ही पूजा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। राखी की थाली को अच्छे से सजाना चाहिए। इस दिन क्रोध और अहंकार से बचना चाहिए। सभी प्रकार की बुरी आदतों को त्यागकर इस पर्व को श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। रक्षा बंधन पर बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए।

रक्षाबंधन पर इन देवताओं को बांधें राखी, सभी मनोकामनाएं होंगी पूर्ण

भगवान गणेश: रक्षा बंधन के दिन, भगवान गणेश को लाल रंग की राखी बांधनी चाहिए। क्योंकि श्री गणेश को लाल रंग पसंद है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव: रक्षा बंधन (Rakshabandhan) का पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। . चूंकि सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है और पूर्णिमा इस महीने का आखिरी दिन है। इसलिए इस दिन भगवान शिव को राखी बांधने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं।

भगवान विष्णु: पीला रंग भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। इसलिए रक्षा बंधन के दिन भगवान नारायण को हल्दी का तिलक लगाकर पीले रंग की राखी बांधनी चाहिए।

भगवान श्री कृष्ण: द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को राखी बांधी थी। बदले में उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई। द्वारिकाधीश को राखी बांधने से वह हर हाल में रक्षा करते हैं।

श्री हनुमान जी: हनुमान जी (Hanuman ji) को लाल रंग की राखी बांधनी चाहिए। इससे मंगल ग्रह शांत होता है और बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है।

यह उपाय करने से प्राप्ति होती है सुख-समृद्धि और दूर होती हैं आर्थिक परेशानियां

1- रक्षाबंधन के दिन अपनी बहन के हाथ से एक अछत, सुपारी और चांदी का सिक्का गुलाबी कपड़े में लेकर घर की तिजोरी में या पूजा स्थल पर रख दें। इससे मां लक्ष्मी की अपार कृपा होगी। घर में धन और समृद्धि में वृद्धि होगी।

2- रक्षा बंधन के दिन बहनों को सबसे पहले गुलाबी सुगंधित राखी मां के चरणों में अर्पित करनी चाहिए। फिर भाई की कलाई पर बांध दें। ऐसा करने से आपके भाई के धन से जुड़ी सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी।

3- रक्षा बंधन का पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यदि आप सावन पूर्णिमा के दिन दूध की खीर और बताशा या सफेद मिठाई चंद्रमा को अर्पित करते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि इससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

4- रक्षाबंधन यानि सावन पूर्णिमा के दिन ‘ॐ सोमेश्वराय नम:’ मंत्र का जाप करके दूध का दान करें तो कुंडली में व्याप्त चंद्र दोष (Chandra Dosh) समाप्त हो जाता है।

5 – रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दिन गणेश जी को राखी बांधने से भाई-बहन के बीच मनमुटाव समाप्त हो जाता है और आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।

6 – यदि बहनें रक्षा बंधन (Rakshabandhan) के दिन बजरंबली जी को राखी बांधती हैं, तो भाई-बहन के बीच आने वाले सभी संकट और बाधाएं दूर हो जाती हैं।

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