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गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है, मनुस्मृति मांस खाना लिखा है क्या?

गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है – वैदिक धर्म में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। जो हिंसा अत्याचारी से अपनी रक्षा के लिए नहीं की जाती वह सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है, और ऐसी हिंसा से मांस खाने की प्राप्ति होती है। इस प्रकार मांस खाना हिंदुओं के लिए सबसे बड़ा पाप माना जाता है। गीता,महाभारत और गरुण पुराण आदि में ‘मांसभक्षण’ की कड़ी निंदा की गई है।

आज के इस लेख में हम आपको गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है, महाभारत में मांस खाने के बारे में क्या लिखा के बारे में जानकारी देने वाले है। तो आइये जानते है –

गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है (Gita Mein Mas Khane Ke Baare Mein Kya Likha Hai)

भगवद गीता में श्री कृष्ण जी ने 3 प्रकार के भोजन के बारे में बताया है। सात्विक, दूसरा राजसिक और तामसिक।

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मांस किसी जीव के शरीर का अंग है। जो दुर्गंधयुक्त, अधपका और अपवित्र माना जाता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने मांस खाने से साफ मना किया है। गीता के अनुसार जो लोग मांस का सेवन करते हैं। वे राक्षस हैं। इसलिए गीता में मांस खाने की स्पष्ट मनाही है।

महाभारत में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है (Mahabharat Mein Mas Khane Ke Baare Mein Kya Likha Hai)

जो दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे अधिक घृणित और क्रूर व्यक्ति कोई नहीं है।

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जो मांस खाना छोड़ देता है, उसका सभी प्राणियों द्वारा आदर किया जाता है, सभी प्राणियों द्वारा उस पर विश्वास किया जाता है और साधु-संत उसका सदैव आदर करते हैं।

जो शराब और मांस का त्याग करता है। उसे दान, यज्ञ और तप इन तीनों का फल मिलता है।

बुद्धिमान लोग अहिंसा रूपी परम धर्म की प्रशंसा करते हैं। जैसे मनुष्य को अपनी जान प्यारी होती है, उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपनी जान प्यारी होती है।

मांस किसी घास, लकड़ी या पत्थर से पैदा नहीं होता, वह किसी जानवर को मारकर ही मिलता है, इसलिए उसे खाना बहुत बड़ा दोष है।

जो स्वयं मांस नहीं खाता, बल्कि खाने वाले का पक्ष लेता है, वह भी भाव-दोष के कारण मांस खाने के पाप का भागी बनता है। इसी प्रकार जो मारने वाले का अनुमोदन करता है, वह भी हिंसा का दोषी है।

जो व्यक्ति मांसलोभी, मूर्ख और नीच व्यक्ति है, और यज्ञ आदि वैदिक तरीकों के नाम पर जानवरों की हिंसा करता है, वह नरक भोगने का अधिकारी है।

मांस खाने वाले अधिकतर लोगों में चिड़चिड़ापन और गुस्सा अधिक रहता है, तथा शरीर और मन दोनों अस्वस्थ हो जाते हैं। वे गंभीर बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इन बीमारियों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, किडनी रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं।

मनुस्मृति मांस खाना लिखा है (Manusmriti Mas Khana Likha Hai)

मनुस्मृति के अनुसार मांस खाना पाप है। मनुस्मृति को हिंदू धर्म का पवित्र और मौलिक ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ में मांस खाना अच्छा नहीं बताया गया है।

FAQs

क्या गीता मांस खाने पर रोक लगाती है?
हाँ, गीता मांस खाने पर रोक लगाती है।

क्या हिंदू धर्म में मांस खा सकते हैं?
नहीं, हिंदू धर्म में मांस नहीं खा सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस लेख में हमने आपको गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है, महाभारत में मांस खाने के बारे में क्या लिखा , मनुस्मृति मांस खाना लिखा है के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है अच्छा लगा है, तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।

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